नजर - जादू - सिहर की हकीकत
क़ुरआन और हदीस से साबित - पार्ट 1
"नज़र लगना" (Evil Eye / नज़र-ए-बद) हक़ीक़त है — यानी यह एक सच्चाई है, और इसका ज़िक्र अहादीस और क़ुरआन दोनों में मिलता है।
1. नज़र का ज़िक्र हदीस में:
रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया:
"नज़र हक़ है (सच्च है)। अगर कोई चीज़ तक़़दीर से आगे जा सकती तो वो नज़र होती।" [सहीह मुस्लिम, हदीस नंबर 2188]
हदीस का मतलब: नज़र लगना और इसका असर साबित है और अगर कोई चीज़ तक़दीर को भी बदल सकती, तो वो नज़र होती — यानी इसका असर बहुत तेज़ और हक़ीक़त पर आधारित है।
2. क़ुरआन में नज़र से हिफ़ाज़त के लिए सिखाई गई सूरह:
"और मैं पनाह मांगता हूँ उस हसद करने वाले के शर (बुराई) से, जब वह हसद करे।" [सूरह अल-फलक़ (113:5)]
3. रसूलुल्लाह (ﷺ) नज़र लगने पर क्या करते थे?
जब किसी को शक होता कि किसी को नज़र लग गई है, तो वुज़ू कर के पानी से ग़ुस्ल करवाना, या मुआव्विज़ात (3 कुल सूरह अल इख़्लास, अल फ़लक़, अन नास) पढ़कर फूंकना और हाथ फेरना – यही तरीक़ा था।
- 1. सूरह इख़लास, सूरह फलक, और सूरह नास — सुबह-शाम 3-3 बार पढ़ें।
- 2. "अऊज़ु बि-कलिमातिल्लाहि ताम्माति..." वाली दुआ पढ़ें (रात को 3 बार)।
- 3. हर अच्छे काम या ख़ूबसूरत चीज़ को देखकर " अल्लाहुम्मा बारिक, माशाल्लाह" पढ़ें.
नज़र से हिफ़ाज़त के लिए जो दुआ नबी करीम (ﷺ) ने सिखाई, वो यह है:
أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللهِ التَّامَّةِ مِنْ كُلِّ شَيْطَانٍ وَهَامَّةٍ وَمِنْ كُلِّ عَيْنٍ لَامَّةٍ
"अऊज़ु बि-कलिमातिल्लाहि ताम्माति मिन कुल्लि शैतानिन् व हाम्माह, व मिन कुल्लि अयनिन लाम्माह"
"मैं अल्लाह के मुकम्मल कलिमों के ज़रिए हर शैतान, ज़हरीले जानवर और बुरी नज़र से पनाह मांगता हूँ।"
[सुनन अबू दाऊद: हदीस 4737, मुस्नद अहमद]
जादू (सिहर/तंत्र-मंत्र) हक़ीक़त है (सच है) — यह सिर्फ़ वहम नहीं बल्कि क़ुरआन और हदीस दोनों में इसका ज़िक्र आता है।
1. क़ुरआन में जादू का ज़िक्र:
(i) सूरह अल-बक़राह – आयत 102:
"और उन्होंने उस चीज़ की पैरवी की जो शैतान ने सुलेमान (अलैहिस्सलाम) के दौर में पढ़ा करते थे... और उन्होंने लोगों को जादू सिखाया... जिससे पति-पत्नी के बीच जुदाई डाल देते थे।" [क़ुरआन, सूरह अल-बक़रह: 2:102]
इस आयत से साबित होता है कि:
- जादू मौजूद है,
- लोग इसे सीखते हैं,
- और इसका असर इंसानों पर होता है — यहाँ तक कि रिश्तों में भी फूट डलवाने के लिए।
2. हदीस में जादू का ज़िक्र:
रसूलुल्लाह (ﷺ) पर जादू किया गया था:
“रसूलुल्लाह (ﷺ) पर यहूदी लबीद बिन अल-आसम ने जादू किया था, जिससे आप (ﷺ) को लगता कि आप कुछ कर रहे हैं जबकि नहीं कर रहे थे।” [सहीह बुखारी: हदीस 5763, सहीह मुस्लिम: हदीस 2189]
इस हदीस से साबित है कि:
- नबी (ﷺ) जैसे अल्लाह के प्यारे पर भी जादू का असर हुआ था।
- जादू एक असली चीज़ है, सिर्फ़ मन का धोखा नहीं।
3. जादू की हक़ीक़त:
- जादू का असर हो सकता है: शरीर, सोच, रिश्ते, सेहत पर।
- जादू से शिफ़ा भी है: क़ुरआन और सुन्नत के ज़रिए (रूक्याह)।
इस्लाम में हिदायत:
- जादू सीखना हराम (गुनाह-ए-कबीरा) है।
- इलाज के लिए कुरानिक रूक्याह करें — शिर्क से दूर रहें (जैसे तावीज़, मंत्र आदि जो अल्लाह के अलावा किसी को पुकारते हों)।
- इस्लाम में “जादू करना” और “जादू करवाना” – दोनों कठोर रूप से हराम (सख़्त मना) हैं। यह गुनाह-ए-कबीरा (बड़ा गुनाह) है और कुछ हदीसों में इसे कुफ़्र (ईमान से बाहर निकलना) के बराबर बताया गया है।
1. क़ुरआन से प्रमाण:
"... और वे (यहूद) वह चीज़ सीखते थे जिससे पति-पत्नी के बीच जुदाई कर देते थे। हालाँकि वे किसी को नुक़सान नहीं पहुँचा सकते थे मगर अल्लाह के इज़्न से। और वे ऐसी चीज़ सीखते जो उनके लिए हानिकारक थी, ना कि लाभदायक।" [सूरह अल-बक़रह (2:102)]
सीख:
- जादू लोगों को नुक़सान पहुँचाता है।
- यह गैर-फ़ायदेमंद और ख़तरनाक अमल है।
2. हदीस से प्रमाण:
(i) सात हलाक करने वाले गुनाहों में से एक:
रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया: “सात हलाक कर देने वाली चीज़ों से बचो…”
फिर फ़रमाया:
- 1. अल्लाह के साथ किसी को शरीक करना (शिर्क),
- 2. जादू करना,
- 3. उस जान को नाहक क़त्ल करना जिसे अल्लाह ने हराम ठहराया है,
- 4. सूद (रिबा) खाना,
- 5. यतीम का माल खाना,
- 6. जंग के दिन दुश्मनों से पीठ फेरना,
- 7. पाकदामन, मोमिन और बेगुनाह औरतों पर इल्ज़ाम लगाना।"
[सहीह बुखारी: 5763, सहीह मुस्लिम: 89]
सीख: जादू करना उन्हीं गुनाहों में है जो इंसान को हलाक (बर्बाद) कर देते हैं।
(ii) जादूगर की सज़ा:
हज़रत उमर (रज़ि.अ) ने फ़रमाया: “हर जादूगर को क़त्ल कर दो।” [मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा: 23853]
सीख: जादू करना इतना बड़ा गुनाह है कि सहाबा की नज़र में इसकी सज़ा मौत तक थी।
(iii) ता’वीज़, टोने-टोटके, जिन्न से मदद लेना — सब मना है:
“जो किसी काहिन (जोतिषी, ओझा) या जादूगर के पास गया और उसकी बातों को सच माना, उसका 40 दिन का नमाज़ कबूल नहीं होती।” [सहीह मुस्लिम: 2230]
"जिसने किसी काहिन (ज्योतिषि) की तस्दीक़ की उसने उस चीज़ का इनकार किया जो मुहम्मद पर नाज़िल हुआ यानी क़ुरआन का इनकार किया" [सुनन अबु दाऊद 3904]
By: miraculous_quran_verses
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।