Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13i): Muhammad saw

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13i): Muhammad saw


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13i)

अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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3. नबी बनाये जाने के बाद 

38. मदीना की जानिब हिजरत

जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अंसार से इस्लाम तथा अपनी और अपने साथियों की मदद पर बैअत ली तो मुसलमानों ने वहां पर अपना ठिकाना बनाना शुरू कर दिया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने साथियों को और मक्का के मुसलमानों को मदीना हिजरत करने और अपने अंसार भाइयों के साथ रहने की अनुमति दे दी और कहा "बेशक अल्लाह तआला ने तुम्हारे लिए ऐसे भाई और ऐसे घर का प्रबंध कर दिया है जहां तुम इत्मीनान से रह सकोगे चुनांचे उन लोगों ने मुख्तलिफ़ ग्रुप की शक्ल में निकलना शुरू कर दिया।

लेकिन मुसलमानों के लिए मक्का से मदीना हिजरत करना इतना सरल नहीं था। क़ुरैश इसके लिए भी ख़ुशी-ख़ुशी तैयार नहीं हुए बल्कि वह मक्का से मदीना जाने वाले तमाम रास्तों में रोड़े अटकाते रहे और हिजरत करने वालों को सख़्त तकलीफ़ और परेशानियों में डालते रहे लेकिन हज़ार रुकावटों के बाद भी वह हिजरत करने वालों को न रोक सके, मुहाजिरों को मक्का को रहना पसंद नहीं था। हिजरत करने वालों में कुछ तो ऐसे थे जिनके बीवी और बच्चों को मक्के में ही रोक लिया गया उन्हें अकेले सफ़र करना पड़ा जैसे कि अबु सलमा रज़ि अल्लाहु अन्हु और उनमें से कुछ ऐसे थे जिनसे पूरे जीवन की कमाई और तमाम माल छीन लिया गया जैसे सोहैब रज़ि अल्लाहु अन्हु के साथ हुआ।

उमर बिन ख़त्ताब, तल्हा, हमज़ा, ज़ैद बिन हारिसा, अब्दुर्रहमान बिन औफ़ ज़ुबैर बिन अल अव्वाम, अबु हुज़ैफ़ा, उस्मान बिन अफ़्फ़ान और अन्य सहाबा ने हिजरत की और हिजरत का सिलसिला चलता रहा यहांतक कि मक्का में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ केवल अली बिन अब तालिब और अबु बकर बिन अबि क़ुहाफ़ा बाक़ी रह गए या वह मुसलमान रह गए थे जो किसी की क़ैद में थे।

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39. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़िलाफ़ क़ुरैश की साज़िश और इरादे में नाकामी

जब क़ुरैश ने देखा कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथी मदीना के अंसार के पास जा रहे हैं जिनपर उनका कोई कंट्रोल नहीं है तो उन्हें इस बात का ख़तरा हुआ कि कहीं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी मदीना न चले जाएं। वह जानते थे इसके बाद कोई बहाना कामयाब नहीं होगा और न उनके सामने कोई रास्ता रहेगा। चुनांचे वह दारुन नदवा में इकट्ठे हुए जो क़ुसई बिन किलाब का घर था और क़ुरैश का प्रत्येक फ़ैसला यहीं पर होता था वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मामले में भी जो मशविरा करते थे यहीं पर करते थे इसलिए एक बार फिर क़ुरैश के सम्मानित लोग यहां इकट्ठे हुए।

आख़िर में इस बात पर उनका इत्तेफ़ाक़ हुआ कि हर क़बीले से एक-एक ताक़तवर ऊंचे घराने का नौजवान तैयार होकर आए और वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर हमला कर दे और प्रत्येक व्यक्ति एक साथ मारे इसतरह उसका ख़ून मुख्तलिफ़ क़बीलों में बंट जाएगा और फिर बनी अब्दे मुनाफ़ तमाम क़बीलों से एक साथ जंग नहीं कर सकेंगे। इसके बाद मीटिंग ख़त्म हो गई और सब अपने अपने घर चले गए।

अल्लाह तआला ने रसूलुल्लाह को उसकी ख़बर दे दी चुनांचे आपने अली बिन अबि तालिब को हुक्म दिया कि वह उनके बिस्तर पर चादर ओढ़ कर सो जाएं। उन्हें हरगिज़ कोई तकलीफ़ नहीं पहुंचेगी।

क़ुरैश रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरवाज़े पर इकट्ठे हुए। जब रसूलुल्लाह वहां से निकले तो उनके हाथ में मिट्टी थी जिसे उनकी तरफ़ फेंका फिर तो वह कुछ देख ही न सके। मिट्टी उनके सिर पर डालते हुए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सूरह यासीन आरंभ से आयत नौ فَأَغۡشَيۡنَٰهُمۡ فَهُمۡ لَا يُبۡصِرُونَ (हमने उन्हें ढाँक दिया है, अब वह कुछ नहीं देख सकते थे) तक की तिलावत की।

कोई आने वाला आया और उनसे पूछने लगा तुम यहां किसका इंतेजार कर रहे हो? उन्होंने कहा मुहम्मद का। उसने कहा अल्लाह ने तुम्हें नाकाम बना दिया अल्लाह की क़सम वह तो कब के जा चुके जहां उन्हें जाना था।

उन्होंने झांक कर देखा तो बिस्तर पर सोया हुआ पाया फिर उन्हें यक़ीन हो गया कि रसूलुल्लाह ही हैं। जब सुबह हुई और उस बिस्तर से अली रज़ि अल्लाहु अन्हु को उठते हुए देखा तो वह शर्मिंदा हुए और नाकाम वापस लौट गए।

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40. रसूलुल्लाह की हिजरत मदीना की जानिब

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु के पास आए और कहा बेशक अल्लाह ने मुझे यहां से निकलने और हिजरत करने की अनुमति दे दी है, अबु बकर ने कहा, मुबारक हो या रसूलुल्लाह और उनकी आंखों में ख़ुशी के आंसू आगये। अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने सवारी का इंतेज़ाम किया दोनों इस सफ़र की तैयारी करने लगे और अब्दुल्लाह बिन उरैक़त को रास्ता बताने के लिए किराये पर लिया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अली रज़ि अल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया कि वह मक्का में रुके रहें जबतक कि वह तमाम अमानतें उनके हवाले न कर दें जिन लोगों ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास रखी थीं। इसलिए कि मक्का का कोई घर ऐसा न था जिसकी अमानत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आपकी सच्चाई और अमानतदारी के कारण न रखी रही हो। 

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41. ग़ार ए सौर में

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु मक्का से छुपते-छुपाते निकले। अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने अपने बेटे अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहु अन्हु को यह आदेश दिया था कि वह मक्का के लोगों की बातें ध्यान से सुनें और आकर बताएं तथा अपने ग़ुलाम आमिर बिन फ़ुहैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु को आदेश दिया कि वह दिन में बकरियां चराने के लिए ले जाएं और रात में उनके क़रीब ले आएं और असमा बिन्ते अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हा उन दोनों के लिए खाना लेकर आती थीं।

उन्होंने ग़ार ए सौर में ठहरने का इरादा किया अबु बकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले ग़ार में दाख़िल हुए, वह ग़ार से चिमट कर बैठ गए ताकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कोई नुक़सान न पहुंचे फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बुलाया।

यह दोनों जैसे ही अंदर गए उसी समय अल्लाह ने मकड़ी को भेजो उसने आकर ग़ार और पेड़ के दरमियान ग़ार के मुंह पर जाला तान दिया जिसने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु को ढक दिया। फिर अल्लाह ने दो जंगली कबूतरों को आदेश दिया कि वह अपने परों को हरकत दे रहे थे यहांतक कि पेड़ और मकड़ी के दरमियान आकर बैठ गए। "सच है ज़मीन व आसमान की फ़ौज तो अल्लाह ही की है।"

मुशरेकीन ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़दमों के निशान पर उनका पीछा किया लेकिन जब वह पहाड़ पर पहुंचे तो मामला उन पर गडमड हो गया फिर वह पहाड़ पर चढ़े और ग़ार के पास से गुज़र गए उन्होंने जब ग़ार के दरवाज़े पर मकड़ी का जाला देखा तो आपस में कहने लगे अगर यहां कोई होता तो दरवाज़े पर मकड़ी का जाला न होता।

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42. ग़म न करो अल्लाह हमारे साथ है

अभी वह ग़ार में ही थे कि अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने मुशरेकीन का ख़तरा महसूस किया और बोले या रसूलुल्लाह अगर उनमें से किसी ने एक क़दम उठाकर देखा तो वह हमें देख लेंगे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया क्या तुम्हारा इन दो के बारे में यह ख़्याल है जिसका तीसरा अल्लाह है। इस विषय में क़ुरआन में है:

ثَانِيَ ٱثۡنَيۡنِ إِذۡ هُمَا فِي ٱلۡغَارِ إِذۡ يَقُولُ لِصَٰحِبِهِۦ لَا تَحۡزَنۡ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَنَاۖ

"वह सिर्फ़ दो में का दूसरा था, जब वह दोनों ग़ार [गुफा] में थे, जब वह अपने साथी से कह रहा था कि “ग़म न कर, अल्लाह हमारे साथ है" (1)

(सूरह 09 अत तौबा आयत 40)

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43. सूराक़ा का पीछा करना और उसके साथ घटना 

क़ुरैश को जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विषय में कोई सूचना नहीं मिली तो उन्होंने ऐलान करा दिया कि जो भी उन्हें पकड़ कर लाएगा उसे सौ ऊंट पुरुष्कार में दिया जाएगा। इधर वह दोनों ग़ार में तीन रात ठहरे रहे फिर वहां से चले तो उनके साथ आमिर बिन फ़ुहैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु और एक मुशरिक रास्ता दिखाने वाला था जिसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किराए पर लिया था, वह उन्हें समुद्र के किनारे किनारे ले गया।

सुराक़ा बिन जोअशम के दिल में लालच आया कि वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पकड़कर क़ुरैश के हवाले कर दे और सौ ऊंट प्राप्त कर ले। चुनांचे उसने उनके पीछे अपना घोड़ा डाल दिया लेकिन यह क्या! घोड़े ने ठोकर कई और सुराक़ा गिर पड़ा, उसने फिर हिम्मत की और घोड़ा पीछे दौड़ा दिया घोड़े ने दूसरी बार भी ठोकर खाई और सुराक़ा फिर गिर पड़ा, उसने अभी भी हिम्मत नहीं हारी और फिर घोड़ा उनके पीछे दौड़ा दिया और इतना क़रीब पहुंच गया कि दोनों ने एक दूसरे को देख लिया तभी घोड़े ने एक बार फिर ठोकर खाई और सुराक़ा इस बार ऐसा गिरा कि उसका दोनों हाथ ज़मीन में धंस गए फिर उसने उनके पीछे एक बगूला देखा। (1) 

सुराक़ा के साथ जो घटना घटित हुई यह देखकर उसे यक़ीन हो गया कि वह वास्तव में अल्लाह के रसूल है और उन्हें अल्लाह का समर्थन हासिल है और यह बात बिल्कुल स्पष्ट है। उसने उन्हें पुकारा और कहा मैं सुराक़ा बिन जोअशम हूं आप मेरी तरफ़ देखें, मैं आपसे कुछ बात करना चाहता हूं, अल्लाह की क़सम मेरी जानिब से अब आपको कोई नुक़सान नहीं पहुंचेगा। रसूलुल्लाह सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम ने अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु से कहा उससे पूछो कि वह हमसे क्या चाहता है? सुराक़ा ने कहा कि आप मेरे लिए कोई ऐसी तहरीर (शरण पत्र) लिख दे जो मेरे और आपके दरमियां निशानी रहे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आमिर बिन फ़ुहैरा को हुक्म दिया चुनांचे उन्होंने किसी हड्डी या चमड़े पर एक तहरीर (शरण पत्र) लिख कर उसे दी।

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44. सुराक़ा के हाथ में किसरा के कंगन

फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा ऐ सुराक़ा! उस दिन तेरा क्या हाल होगा जब तेरे हाथ में किसरा के कंगन होंगे।

उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु की ख़िलाफ़त में किसरा का कंगन और उसका ताज माले ग़नीमत में आया तो उन्होंने सुराक़ा को बुलाया और उन्हें यह कंगन पहनाए गए।

इसके बाद सुराक़ा ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कुछ सफ़र का और कुछ अन्य सामान पेश किया लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे क़ुबूल करने से इनकार कर दिया और उससे वादा लिया कि वह उनके बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगा।

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45. बरकत वाला इंसान

इस सफ़र में उनका का गुज़र बनी ख़ुज़ाआ की एक औरत उम्मे माअबद के पास से हुआ उसके पास एक बकरी थी जो अपनी कमज़ोरी के कारण रेवड़ से अलग पीछे रह गई थी। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसके थन पर हाथ फेरा बिस्मिल्लाह पढ़ी और दुआ की तो उससे दूध की धार बह निकली आपने उसे ख़ुद पिया और अपने साथियों को पिलाया, सभी ने ख़ूब पेट भरकर पिया फिर आपने दूसरी बार दूध दूहा यहांतक कि इस बार भी प्याला भर गया। जब अबु माअबद आया और उसने माजरा पूछा तो उम्मे माअबद ने कहा हमारे पास से एक मुबारक व्यक्ति गुज़रा था जिसकी ऐसी और ऐसी बातें थीं उसमें ख़ूबियां ही ख़ूबियां थीं वह बेइंतहा ख़ूबसूरत था। यह सुनकर अबु माअबद बोला, मेरे ख़्याल में यह वही व्यक्ति है जिसे क़ुरैश तलाश करते फिर रहे हैं।

रास्ता दिखाने वाला उन दोनों को साथ लिए चलता रहा यहांतक कि उसने उन्हें क़बा पहुंचा दिया जो मदीना के किनारे की एक बस्ती थी। यह बारह रबीउल अव्वल सोमवार का दिन था इसी दिन से इस्लामी कैलेंडर का आरंभ हुआ।

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1, सही बुख़ारी की कुछ रिवायत में घोड़े के पेट तक ज़मीन में धसंने का बयान है। देखें सही बुख़ारी हदीस 3615

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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि 
अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही  

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