Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13f): Muhammad saw

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13f): Muhammad saw

अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13f)

अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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नबी बनाये जाने के बाद 

18. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तकलीफ़ पहुंचाने में क़ुरैश की ज़्यादती और सख़्त दिली

क़ुरैश ए मक्का ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सताने और तकलीफ़ देने के नए-नए तरीक़े ईजाद किए और ज़्यादा ही सख़्त होते गए। उन्होंने किसी रिश्तेदारी का लिहाज़ नहीं किया और न उनके दिल में कण मात्र रहम ही आया बल्कि वह तमाम मानवीय (इंसानी) सीमाओं को लांघ गए।

एक दिन नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिदे हराम में सज्दे की हालत में थे क़ुरैश भी उनके आसपास मौजूद थे तभी उक़बा बिन अबि मुईत एक ऊंट की ओझड़ी लेकर आया और उसे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पीठ पर डाल दिया, आप उसके बोझ से सर को उठा नहीं सके आपकी बेटी फ़ातिमा अलैहस्सलाम दौड़ी हुई आईं और उन्होंने आपकी पीठ से उसे उठाया तथा ऐसा करने वाले को बद्दुआ दी और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी बद्दुआ दी।

ऐसे ही एक दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काबा के सहन में नमाज़ पढ़ रहे थे कि उक़बा बिन अबि मुईत आया और उसने अपनी चादर उनके गर्दन में डालकर गला घोंटने लगा, अबू बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने उसका दोनों कंधा पकड़ लिया और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास से यह कहते हुए हटा दिया "क्या तुम ऐसे इंसान को क़त्ल कर देना चाहते हो जो कहता है कि मेरा रब अल्लाह है"

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19. हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब रज़ि अल्लाहु अन्हु ईमान ले आए

एक दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सफ़ा पहाड़ी के पास थे कि अबु जहल का गुज़र हुआ उसने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मारा और गाली दी लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसका कोई जवाब नहीं दिया फिर वह चला गया। अभी थोड़ी ही देर गुज़री थी कि हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब (रसूलुल्लाह के चाचा) तीर कमान उठाए हुए शिकार थे वापस आए। वह क़ुरैश के एक बहादुर ग़ैरतमंद नौजवान थे उन्हें अब्दुल्लाह बिन जिदआन की बांदी ने सब कुछ बता दिया जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ पेश आया था। हमज़ा का ग़ुस्सा भड़क उठा, तत्काल मस्जिद में दाख़िल हुए और देखा कि अबु जहल लोगों के दरमियान बैठा हुआ है वह उसके पास गए यहांतक की उसके सर पर पहुंच गए, कमान उठाई और उसके सर पर दे मारा जिससे सख़्त चोट लगी फिर कहा तूने उसे गाली दी है, मैं भी उसी के दीन पर हूं, मैं भी वही कहता हूं जो वह कहता है। अबु जहल ख़ामोश रहा और हमज़ा ने इस्लाम कुबूल कर लिया। क़ुरैश के दरमियान उनका एक नाम और बहादुरी में अपना स्थान था इसलिए मुसलमानों को इस से बड़ी ताक़त और हिम्मत मिली।

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20. उतबा और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बीच बातचीत

जब क़ुरैश ने देखा की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथी तो दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं तो उतबा बिन रबीआ ने क़ुरैश से अनुमति मांगी कि वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास इस मामले में बातचीत करना और कुछ प्रस्ताव रखना चाहता है शायद कि उनमें से वह किसी को क़ुबूल कर ले तो वह उसको दे देंगे और वह इस काम से रुक जाएगा। क़ुरैश ने उसे इजाज़त दे दी और अपना प्रतिनिधि बना दिया। 

उतबा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया, उनके क़रीब बैठ गया और कहां ऐ मेरे भतीजे बेशक तुम्हें अपनी हैसियत मालूम है तुम हमारे दरमियान एक सम्मानित व्यक्ति हो लेकिन तुम जो चीज़ लाए हो उसके द्वारा तुमने अपनी क़ौम को भारी मुसीबत में डाल दिया है। तुमने क़ौम में जुदाई डाल दी, हमारे नौजवानों को बेवक़ूफ़ बनाया, हमारे माबूदों और दीन पर ऐब लगाया, और हमारे गुज़रे हुए बुज़ुर्गों को काफ़िर कहा। तुम मेरी बात ध्यान से सुनो मैं कुछ सुझाव तुम्हारे सामने रखता हूं जिसपर तुम ग़ौर करो शायद कि उसमें से कोई चीज़ तुम्हारे दिमाग़ बैठ जाय। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा, हां अबुल वलीद कहो "मैं सुनूंगा"

उतबा बोला, ऐ भतीजे! अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारे पास बहुत सा माल आ जाए तो हम तुम्हारे लिए इतना माल जमा कर देते हैं कि तुम हम में सबसे ज़्यादा मालदार हो जाओगे अगर तुम सम्मान और इज़्ज़त चाहते हो तो हम तुम्हें सरदार बना लेते हैं यहांतक कि तुम्हारे बग़ैर किसी मामले का निर्णय नहीं होगा अगर तुम्हारा उद्देश्य हुकूमत करने का है तो हम तुम्हें बादशाह स्वीकार कर लेते हैं और अगर तुम्हारे पास पैग़ाम लाने वाले कोई जिन्न भूत है जिसे तुम देखते हो परंतु ख़ुद से दूर नहीं कर सकते तो हम तुम्हारे इलाज के लिए बहुत से हकीम और डॉक्टर बुला लेते हैं और इतनी दौलत ख़र्च कर देंगे कि तुम पूरी तरह ठीक हो जाओगे।

जब उतबा अपनी बात कह चुका तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा, ऐ अबुल वलीद क्या तुम्हारी बात पूरी हो गई? उसने कहा जी हां, रसूलुल्लाह ने कहा अब ज़रा मेरी भी सुन लो। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सूरह 41 फ़ुस्सिलत (हाम मीम अस सज्दा) की आयात सज्दा तक तिलावत की, उतबा ने जब उसे सुना तो दोनों हाथ पीछे टेक लगाकर और बिल्कुल ख़ामोशी के साथ ध्यानपूर्वक सुनता ही रह गया यहांतक कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तिलावत समाप्त की तो सज्दा किया फिर कहा, अबुल वलीद तुमने सुना अब तुम जानो और वह जाने।

उतबा उठकर अपने साथियों के पास चला गया उसे देखकर लोगों में कानाफूसी होने लगी, अल्लाह की क़सम अबुल वलीद के चेहरे का रंग वह नहीं है जो यहां से लेकर गया था जो। जब वह उनके पास इत्मीनान से बैठ गया तो लोगों ने कहा अबुल वलीद कैसे बदले बदले लग रहे हो, उसने कहा ख़ुदा की क़सम अबतक जो भी मैंने सुना है उसमें आज जैसी बेहतर बात कभी नहीं सुनी, ख़ुदा की क़सम यह शेअर नहीं है, न जादू है और न कहानत है, ऐ क़ुरैश के लोगो! मेरी बात मान लो और इसे अपने रास्ते पर छोड़ दो और ख़ुद को अलग रखो। लोगों ने कहा इसका जादू तेरी ज़बान से बोल रहा है, यह सुनकर उसने कहा इस मामले में यह मेरी एक राय है वरना तुम जैसा मुनासिब समझो उसके साथ वैसा व्यवहार करो

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21. हब्शा की तरफ़ हिजरत

जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने देखा कि उनके साथियों को तकलीफ़ पहुंचाई जा रही है और उनके पास इतनी ताक़त नहीं कि उन्हें ज़ुल्म से बचा सकें। तो उन्हें आदेश दिया कि हब्शा चले जाओ वहां ऐसा बादशाह हैं जिसके यहां किसी पर ज़ुल्म नहीं होता, यह सच्चाई की ज़मीन है वहीं रहो यहांतक कि अल्लाह तुम्हारे लिए कोई रास्ता निकाल दे।

आदेश सुनते ही मुसलमानों का एक गिरोह हब्शा की तरफ़ जाने के लिए निकल पड़ा। इस्लाम में यह पहली हिजरत थी जिसमें दस लोग शामिल थे इसके अमीर उस्मान बिन मज़ऊन रज़ि अल्लाहु अन्हु थे फिर जाफ़र बिन अबु तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हु ने हिजरत की, उसके बाद तो फिर एक के पीछे एक मुसलमान जाने लगे यहांतक कि काफ़ी संख्या में मुसलमान हब्शा में इकट्ठे होगए। उनमें से कुछ अपने घर वालों के साथ निकले थे और कुछ अकेले निकले। इस प्रकार वहां हिजरत करने वालों की तादाद तिरासी तक पहुंच गई।

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22. क़ुरैश ने मुसलमानों का पीछा किया

क़ुरैश ने जब देखा कि मुसलमान हब्शा की ज़मीन में सुकून और इत्मीनान के साथ हैं तो उन्होंने अब्दुल्लाह बिन रबीआ और अम्र बिन आस बिन वायेल को भेजा, उन्होंने नजाशी और उसके फ़ौजी सरदारों के लिए बहुत से तोहफ़े तैयार करके भेजा। वह दोनों नजाशी के दरबार में पहुंचे लेकिन उससे पहले फ़ौजी सरदारों को अपने इन बहुमूल्य गिफ़्ट के द्वारा राम कर लिया था, उन्होंने बादशाह के दरबार में बोलने की अनुमति मांगी फिर कहा बेशक आपके देश में हमारे यहां के कुछ नादान और बेवक़ूफ़ लोगों ने पनाह ले रखी है उन्होंने अपनी क़ौम का दीन छोड़ दिया है और आपका दीन भी क़ुबूल नहीं किया है बल्कि उन्होंने एक नया दिन ईजाद किया है जिसे न हम जानते हैं और न आप जानते हैं। क़ुरैश के सरदारों ने हमें आप के पास भेजा है वह सरदार या तो उनके वालिद है या उनके चाचा हैं या उनके क़रीबी रिश्तेदार हैं ताकि आप उन्हें लौटा दें वह उनका ज़्यादा ख़्याल रखेंगे और रिश्तेदारी निभाएंगे, फ़ौजी सरदारों ने हां में हां मिलाई और 8कहा, हां यह सच कह रहे हैं ऐ बादशाह आप उन लोगों को उनके हवाले कर दें।

यह सुनकर नजाशी को ग़ुस्सा आ गया और उसने उनकी बात को कुबूल करने और मुसलमान को उनके सुपुर्द करने से इनकार कर दिया और अल्लाह की क़सम खा ली। फिर उसने मुसलमानों को बुला भेजा और ईसाई उलेमा को भी बुला लिया जब मुसलमान आ गए तो उनसे पूछा वह कौन सा दीन है जिसकी वजह से तुमने अपने क़ौम का दीन छोड़ दिया है, हमारे दीन में भी दाख़िल नहीं हुए हो और जो दीन पहले से मौजूद थे उनमें से किसी को क़ुबूल नहीं किया?

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23. जाफ़र बिन अबु तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हु की तक़रीर

जाफ़र बिन अबु तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हु खड़े हुए वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चाचा अबु तालिब के बेटे थे। उन्होंने कहा, ऐ बादशाह हम जाहिल थे, बुतों की इबादत करते, मुर्दार खाते, बहयाई के काम करते, रिश्तेदारों से संबंध तोड़ देते, पड़ोसियों से बुरा सुलूक करते, ताक़तवर कमज़ोर को सताता था। हम इसी हालत में थे कि अल्लाह तआला ने ख़ुद हमीं में से हमारे दरमियान एक रसूल भेजा। हम उसकी सच्चाई, अमानतदारी, पाकीज़गी को पहले से भली-भांति जानते थे। उसने हमें अल्लाह की तरफ़ बुलाया कि हम उसको एक मानें और उसी की इबादत करें और उन पत्थर व बुतों की पूजा करना छोड़ दें जिनकी इबादत हमारे बाप दादा करते थे। हमें सच बोलने, अमानत अदा करने, रिश्तेदारों के साथ नेक सुलूक करने, पड़ोसी से अच्छा व्यवहार करने, हराम काम और ख़ून बहाने से रुकने का हुक्म दिया तथा गंदे कामों, झूठ बोलने, यतीम का माल खाने, तथा भोली भाली पाक दामन औरतों पर इल्ज़ाम लगाने से हमें रोका और हमें आदेश दिया कि हम केवल अल्लाह की इबादत करें उसके साथ किसी को शरीक न करें, हमें नमाज़ ज़कात और रोज़े का हुक्म दिया। चुनांचे जब हम पर दीन स्पष्ट होगया तो हमने उसकी तस्दीक़ की, उसपर ईमान लाए, जो कुछ अल्लाह की जानिब से आया था उसकी पैरवी की इसलिए हमने सिर्फ़ अल्लाह की इबादत की उसके साथ किसी को शरीक नहीं किया। उसे हराम जाना जो हम पर हराम कर दिया गया और उसे हलाल जाना जो हम पर हलाल किया गया इसलिए हमारी क़ौम हमारी दुश्मन हो गई। हमें बहुत सताया, नित नई तकलीफ़ें दीं ताकि हमें अल्लाह की बंदगी से निकालकर बुतों की बंदगी में लौटा दें और जिन गंदी चीज़ों में हम पड़े हुए थे दोबारा उसी में जा पड़ें।

उन्होंने हम पर बहुत ज़ुल्म ढाए, बहुत सताया, हमपर ज़मीन तंग कर दी और हमारे और हमारे दीन के दरमियान रुकावट बनकर खड़े हो गए, हम वहां से निकलकर आपके देश में आ गए। हमने दूसरों पर आपको तरजीह दी, आपकी पनाह में रहना पसंद किया। ऐ बादशाह अब हमें उम्मीद है  कि यहां हम पर जुल्म नहीं किया जाएगा।

नजाशी ने उनकी बातें बड़े सुकून और इत्मीनान से सुनी फिर कहा तुम्हारे पैग़म्बर के पास अल्लाह की जानिब से जो कुछ आया है उसमें से कुछ तुम्हारे पास भी है? 

जाफ़र रज़ि अल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया, हां अवश्य है

नजाशी ने कहा ज़रा मुझे भी पढ़कर सुनाओ।

जाफ़र रज़ि अल्लाहु अन्हु ने सूरह मरयम की इब्तेदाई (आरंभिक) आयात की तिलावत की। नजाशी और पादरी (उसकुफ़) रोने लगे यहांतक कि उनकी दाढ़ियां भीग गईं और उनके सहीफ़े भी भीग गए।

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24. क़ुरैश के प्रतिनिधि मंडल की नाकामी

फिर नजाशी ने कहा बेशक यह कलाम और जो ईसा अलैहिस्सलाम लाए हैं दोनों का स्रोत एक ही फिर क़ुरैश के प्रतिनिधियों की तरफ़ मुतवज्जह हुआ और कहा आप लोग जा सकते हैं अल्लाह की क़सम मैं इन्हें कभी भी तुम्हारे हवाले नहीं करूंगा।

अगले दिन सुबह अम्र बिन आस नजाशी के दरबार में फिर पहुंचे और कहां ऐ बादशाह यह ईसा बिन मरियम के बारे में बड़ी बात कहते हैं। बादशाह ने उसी समय मुसलमानों को बुला लिया और पूछा बताओ तुम लोग ईसा बिन मरयम के विषय में क्या कहते हो? 

जाफ़र रज़ि अल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया हम वही कहते हैं जिसकी ख़बर हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दी गई है, कि वह अल्लाह के बंदे, उसके रसूल, रूह, और वह कलमा हैं जिसे अल्लाह ने कुंवारी पाकदामन मरयम की तरफ़ इलक़ा कर दिया था। यह सुनकर नजाशी ने अपना हाथ ज़मीन पर मारा और एक तिनका उठाया और बोला अल्लाह की

क़सम जो तुमने कहा है ईसा उससे इस तिनके भी ज़्यादा नहीं हैं।

 इसके बाद मुसलमानों को सम्मान के साथ रखा जहां वह अमन व शांति से रहते रहे और इन दोनों सरदारों को नाकाम वापस होना पड़ा।


आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही  

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