Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13a): Muhammad saw

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13a): Muhammad saw


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13a)

अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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जाहिली युग 

1. अल्लाह के नबी ईसा बिन मरयम अलैहिस्सलाम के बाद

नबी आए हुए काफ़ी समय बीत चुका था, पूरे संसार में अंधकार फैल गया था, नूर और ज्ञान का कहीं अता-पता न था और वह आवाज़ें जिसे नबियों और रसूलों ने अपने युग में साफ़ सुथरी तौहीद और ख़ालिस दीन की आवाज़ बुलंद की थी वह जिहालत और गुमराही की उन आवाज़ों में दब गई थी जो मुतहर्रिफ़ीन (पथभ्रष्टों) और दज्जालों ने बुलंद की थी और जिन चिराग़ों को अल्लाह ने नबियों और रसूलों और उनके ख़ुल्फ़ा ने अपने युग में रौशन किया था उसे उन आंधियों ने बुझा दिया था जो समय-समय पर चलती रही थीं।

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2. पुराने दीन (धर्म)

उसे समय तमाम बड़े-बड़े धर्म तथा आख़िरी धर्म ईसाइयत (Christianity) सहित तहरीफ़ करने वालों (पथभ्रष्टों)और मुनाफ़िक़ों के हाथों खेल तमाशा बने हुए थे यहां तक कि उनकी रूह (आत्मा) और रंग रूप भी इस हद तक बदल गया था कि अगर उस दीन के इब्तेदाई लोग बल्कि नबी और रसूल भी जीवित होकर आ जाते तो अपने दीन को पहचान न पाते और उसे नापसंद करते।

यहूदी धर्म तक़ूस (नज़्म और दीनी तरीक़ों में) ऐसी अंधभक्ति का मजमूआ था जिसमें न तो रूह बाक़ी थी और न ज़िन्दगी यानी एक ऐसा दीन बनकर रह गया था जिसमें न दुनिया के लिए कोई पैग़ाम था, न उम्मतों के लिए कोई दावत और न मानवता के लिए रहमत का कोई संदेश था।

जबकि ईसाइयत रंग रूप में अपने इब्तेदाई दौर से ही चरमपंथी ईसाइयों की तहरीफ़ और उनके जाहिली तावील की बुनियाद पर ऐसा मलग़ूलबा बन गई थी जिसमें मसीही तालीमात दफ़न होकर रह गई थीं, तौहीद की रौशनी छुप गई थी और ख़ालिस इबादत का जज़्बा मांद पड़ गया था।

मजूूसी आग की पूजा करते थे वह उसकी इबादत करते और उसी के लिए हैकल और इबादतगाह तामीर करते थे। इबादतगाह से बाहर की दुनिया में वह बिल्कुल आज़ाद थे वह अपनी इच्छाओं और ख़्वाहिशात पर चलते थे जो उनके दिमाग़ में भरी हुई थी, आमाल और अख़लाक़ की सतह पर उनके और दूसरे दीन के मानने वालों में कोई फ़र्क़ बाक़ी नहीं रहा था।

बौद्ध धर्म जो भारत और मध्य एशिया के देशों में फैल चुका था वह मूर्तिपूजा में तब्दील हो कर रह गया था वह जहां जाते अपनी मूर्तियों को उठाए हुए साथ ले जाते और जहां ठहरते या जाते वहां हैकल बनाते और उसमें बुद्ध की प्रतिमा खड़ी कर देते थे।

ब्रह्मवाद जो भारत का पुराना और असली दीन था उनके यहां माबूदों और देवताओं की संख्या इतनी ज़्यादा हो गई थी कि वह लाखों तक पहुंच रही थी। वर्ण व्यवस्था और मुख़्तलिफ़ तबक़ात के दरमियान ज़ुल्म तथा इंसान और इंसान के बीच भेदभाव बहुत ज़्यादा हो गया था।

इसी प्रकार अरब के लोग भी मूर्तिपूजा में बुरी तरह जकड़े हुए थे जिसका उदाहरण भारत के हिंदू धर्म के इलावा कहीं नहीं मिलता। वह शिर्क में इतना आगे बढ़ गए थे कि उन्होंने अल्लाह को छोड़कर बहुत से माबूद बना लिए थे और तमाम लोग मूर्तिपूजा की भिन्न भिन्न शक्लों में बुरी तरह फंसे हुए थे चुनांचे उनका हाल यह था कि उनके घर-घर में specially एक मूर्ति थी यहां तक कि काबा हैं वही काबा जिसे इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने एक ईश्वर की पूजा के लिए बनाया था उसके अंदर भी 360 मूर्तियां रख दी गई थीं।

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3. अरब जज़ीरा

प्रायद्वीप अरब में तमाम लोगों का नैतिक पतन था, वह शराब (मदिरा) और जूए में बुरी तरह लतपत थे। सख़्त दिली और अपनी नाम निहाद असबियत के कारण अपनी बच्चियों को ज़िन्दा दफ़न करते थे इसी प्रकार क़त्ल व ग़ारतगरी और क़ाफ़िलों को लूटना उनकी आदत बन गई थी, महिलाओं का स्तर उनके यहां इस क़दर गिरा दिया गया था कि घर के समान और जानवरों की तरह विरासत का समान बनकर रह गई थी उनमें कुछ ऐसे भी थे जो अपने बच्चों को भुखमरी ग़रीबी और तंगदस्ती के डर से क़त्ल कर देते थे।

अरब जंगों के कारण तबाह होकर रह गए थे एक दूसरे का ख़ून बहाना उनके लिए इतना सरल कि था एक मामूली बात पर चालीस चालीस वर्ष तक लगातार जंग चलती रहती थी जिसमें हज़ारों लोग मारे जाते थे।

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4. हर तरफ़ बिगाड़ फैल चुका था

हक़ीक़त में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नबी बनाए जाने के समय मानवता तबाही के किनारे खड़ी थी इस शताब्दी में इंसान अपने ख़ालिक़ (पैदा करने वाले) को बिल्कुल भूल चुका था जिसके कारण वह ख़ुद को और अपनी मंज़िल को भी भूल चुका था, उसे अच्छाई और बुराई, सुंदरता और बदसूरती के दरमियान फ़र्क़ और तमीज़ नहीं थी यही कारण था कि इतने बड़े देश में शायद एक व्यक्ति भी ऐसा न था जो अपने दीन को अहमियत देता, अपने रब की इबादत करता और शिर्क से ख़ुद को बचाता। अल्लाह तबारक व तआला ने सच कहा है 

"ख़ुश्की और समुद्र (जल और थल) में फ़साद फैल गया है लोगों के अपने हाथों की कमाई के कारण ताकि उनको उनके कुछ आमाल का मज़ा चखाये हो सकता है कि वह हक़ीक़ी दीन पर लौट आएं।

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5. नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अरब में ही क्यों भेजे गए?

अल्लाह ने अरब को दावत क़ुबूल करने और उसे संसार के तमाम क्षेत्रों में पहुंचाने के लिए चुन लिया था क्योंकि उनके दिल साफ़ सुथरे थे उनके यहां कोई ऐसी कठिन और गहरी किताबें न थी जिसको मिटाना या ख़त्म करना मुश्किल होता है जैसे कि रूम ईरान और भारत के लोग अपने इल्म, आदाब और संस्कृति के कारण घमंड में मुब्तिला हो गए थे जबकि अरबों के यहां जिहालत और बदवियत के इलावा कोई स्पष्ट तहरीर मौजूद न थी जिसको मिटाना, धोना और उसके स्थान पर नई तहरीर लिखना ज़्यादा आसान था।

अरब असल फ़ितरत पर थे से इसलिए उनपर जब तक हक़ वाज़ेह और स्पष्ट न हुआ था वह लड़ते थे और जब उनकी आंख की पट्टी खुल गई तो वह मुहब्बत और क़दर करने लगे और उसके रास्ते में शहादत की तमन्ना करने लगे यह लोग सच्चे और अमानतदार हो गए जीवन में सख़्त मेहनती, बहादुर और बेहतरीन घुड़सवार थे।

 अरब के जज़ीरे में मक्का एक शहर था,  मक्का शहर में काबा था जिसकी बुनियाद इब्राहीम और इस्माईल अलैहिमस्सलाम ने डाली थी कि उसमें अल्लाह की इबादत की जाए और वह हमेशा के लिए तौहीद का केंद्र हो

إِنَّ أَوَّلَ بَيْتٍ وُضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِي بِبَكَّةَ مُبَارَكًا وَهُدًى لِلْعَالَمِينَ

"बेशक पहला इबादत का घर जो लोगों के लिए बनाया गया वह मुबारक शहर मक्का में है जो तमाम संसार के लिए हिदायत है।" (1)

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1, सूरह 03 आले इमरान 96

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आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही  

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