Parda kaise aam kiya jaye? | Islam mein parda

Parda kaise aam kiya jaye? | Islam mein parda


पर्दा

पर्दा सुनते ही हमारे मन में एक बुरखा या चादर की छवि उभरती है जिससे शरीर को ढका जाता है। काले रंग का एक ऐसा कपड़ा जो शरीर को छिपाता है, जिसे पहनकर औरत बाहर निकलती है। कहा जाता है कि जब घर से निकलो तो बुरखा पहन लिया करो, इससे तुम सुरक्षित रहोगी, लोगों की नजरों से बच जाओगी, और कोई तुम्हारी पहचान भी नहीं कर पाएगा। 

क्या यही पर्दा है?

नहीं, यह पर्दा नहीं है। 

पर्दा कोई कपड़े का टुकड़ा नहीं है जिसे पहनकर हम जहां चाहें वहां जा सकते हैं, बल्कि पर्दा यह है कि आप इस कपड़े को पहनें और अपने मन और नज़र में तक़वा (धार्मिकता) रखें। मन का पर्दा भी उतना ही जरूरी है जितना हमने उस कपड़े के टुकड़े को समझ रखा है। क्या बुरखा पहनकर हम जो काम आज होते हुए देख रहे हैं, क्या सच में वह पर्दा हो सकता है? दरअसल, बुरखे का इस्तेमाल इसलिए था कि अगर किसी जरूरत के कारण बाहर जाना हो तो आप उसे पहनें ताकि आपको कोई परेशान न करे, आपकी पहचान न हो। पर हमने आज उसे सिर्फ इसलिए इस्तेमाल किया कि हम बुरखा पहनकर एक गैर-मेहरम (वह व्यक्ति जिससे शादी हो सकती है) के साथ घूमने जाएंगे तो हमें कोई पहचान नहीं पाएगा! आज पर्दे की हालत खराब होने के पीछे हमारा ही हाथ है।


क़ुरान में पर्दे का हुक्म


1. सूरह अल-अहज़ाब, आयत 53:

مِنَ ٱلْحَقِّ ۚ وَإِذَا سَأَلْتُمُوهُنَّ مَتَـٰعًۭا فَسْـَٔلُوهُنَّ مِن وَرَآءِ حِجَابٍۢ ۚ

इस आयत में अल्लाह ने फरमाया कि जब तुम उनसे (नबी की बीवियों से) कुछ मांगो तो पर्दे के पीछे से मांगो!

इससे यह बात जाहिर हुई कि अभी तक औरत को पर्दे का हुक्म नहीं था, पर जब आया तो कहा गया कि अगर आप उनसे कुछ मांग भी रहे हैं तो पर्दे में रहकर मांगें। लेकिन आजकल तो न जाने क्या-क्या हो जाता है, पर पर्दे का ध्यान नहीं आता है।


2. सूरह अल-अहज़ाब, आयत 59:

يٰۤـاَيُّهَا النَّبِىُّ قُلْ لِّاَزۡوَاجِكَ وَبَنٰتِكَ وَنِسَآءِ الۡمُؤۡمِنِيۡنَ يُدۡنِيۡنَ عَلَيۡهِنَّ مِنۡ جَلَابِيۡبِهِنَّ ؕ ذٰ لِكَ اَدۡنٰٓى اَنۡ يُّعۡرَفۡنَ فَلَا يُؤۡذَيۡنَ ؕ وَكَانَ اللّٰهُ غَفُوۡرًا رَّحِيۡمًا‏

इस आयत में अल्लाह ने फरमाया कि ऐ नबी, आप अपनी बीवियों, बेटियों और मोमिन औरतों से कह दें कि जब वे घर से बाहर जाएं तो चादर अपने ऊपर डाल लिया करें।

मतलब यहां भी साफ है कि अगर किसी वजह से घर से बाहर जा रहे हैं तो अपने आपको ढककर ही जाएं। पर इसका मतलब यह नहीं है कि हम पर्दा करके अल्लाह के एक हुक्म की तो इत्तेबा (पालन) कर रहे हैं पर वहीं बाहर जाकर न जाने कितने हुक्म को पामाल (अवहेलना) कर रहे हैं।


3. सूरह नूर, आयत 30:

قُل لِّلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا۟ مِنْ أَبْصَـٰرِهِمْ وَيَحْفَظُوا۟ فُرُوجَهُمْ ۚ ذَٰلِكَ أَزْكَىٰ لَهُمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ خَبِيرٌۢ بِمَا يَصْنَعُونَ

इस आयत में अल्लाह ने फरमाया कि मोमिनों से कह दो कि अपनी नज़रें नीची रखें, यह उनके लिए ज्यादा पवित्र है, जो कुछ वे करते हैं अल्लाह उससे खबरदार है।

इस आयत में अल्लाह ने सिर्फ औरत नहीं बल्कि मर्द को भी पर्दे का हुक्म दिया है, कहा कि जब बाहर जाओ तो अपनी नज़र की हिफ़ाज़त करो क्योंकि यह नज़र शैतान के तीरों में से एक ज़हर का बुझा हुआ तीर है (मतलब सबसे खतरनाक तीरों में से एक), क्योंकि यही नज़र ही है जो किसी भी गुनाह तक ले जाने का सबसे पहला रास्ता होती है। इस वजह से यहां मर्द को भी कहा गया कि आप भी पर्दा कीजिए अपनी नज़र का और यही बेहतर है उन चीज़ों से जो कुछ भी हम करते हैं।


4. सूरह नूर, आयत 31:

وَقُل لِّلْمُؤْمِنَـٰتِ يَغْضُضْنَ مِنْ أَبْصَـٰرِهِنَّ وَيَحْفَظْنَ فُرُوجَهُنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا مَا ظَهَرَ مِنْهَا ۖ وَلْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَىٰ جُيُوبِهِنَّ ۖ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا لِبُعُولَتِهِنَّ أَوْ ءَابَآئِهِنَّ أَوْ ءَابَآءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ أَبْنَآئِهِنَّ أَوْ أَبْنَآءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ إِخْوَٰنِهِنَّ أَوْ بَنِىٓ إِخْوَٰنِهِنَّ أَوْ بَنِىٓ أَخَوَٰتِهِنَّ أَوْ نِسَآئِهِنَّ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَـٰنُهُنَّ أَوِ ٱلتَّـٰبِعِينَ غَيْرِ أُو۟لِى ٱلْإِرْبَةِ مِنَ ٱلرِّجَالِ أَوِ ٱلطِّفْلِ ٱلَّذِينَ لَمْ يَظْهَرُوا۟ عَلَىٰ عَوْرَٰتِ ٱلنِّسَآءِ ۖ وَلَا يَضْرِبْنَ بِأَرْجُلِهِنَّ لِيُعْلَمَ مَا يُخْفِينَ مِن زِينَتِهِنَّ ۚ وَتُوبُوٓا۟ إِلَى ٱللَّهِ جَمِيعًا أَيُّهَ ٱلْمُؤْمِنُونَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ

इस आयत में अल्लाह ने फरमाया कि मोमिन औरत को किनसे पर्दा है और किन लोगों से पर्दा नहीं है। जब अल्लाह ने कुरान जैसी मुकद्दस किताब में फरमा दिया है कि हमें पर्दा क्यों करना चाहिए, किससे करना चाहिए और कैसे करना चाहिए, फिर भी इस बात को न समझना या समझना पर अमल न करना यह हमारे लिए अपने हाथों से अपनी नफस (आत्मा) पर ज़ुल्म है और कुछ नहीं!


पर्दा कैसे आम किया जा सकता है?

1. किसी भी चीज़ को समाज में तब अपनाया जाता है जब हमें उसके फायदे बताए जाते हैं। अगर हम आज पर्दा करने के फायदे बताएं तो इसे आम किया जा सकता है।

2. हमने कई बार सुना या देखा है कि जब किसी टॉफ़ी के ऊपर का रैपर उतार दिया जाता है तो उसमें कितनी जल्दी चींटियां लग जाती हैं, पर वही अगर रैपर में है तो उस पर चींटी नहीं लगती। यही हाल आज की औरत का भी है। अगर वह आज बुरखे में अपने आप को ढक कर और मन में तक़वा रख कर बाहर जाए तो उसे किसी भी मनचले लड़के से खतरा नहीं। पर अगर यही औरत बिना अपने आप को ढके बाहर जाए तो यहीं से वह काम आम हो जाते हैं जिससे पूरे खानदान की इज्जत पर बात आ जाती है और फिर हम पुलिस के चक्कर काटते रह जाते हैं।

3. आज हम देख रहे हैं कि सिर पर डिजाइन से स्टाल पहनना या फैशन का अबाया पहनना आम हो रहा है और हम लोग उनसे कहते हैं कि यह पर्दा नहीं है, यह तो तुम फैशन कर रही हो ऐसा कहने से जो उसने एक शुरुआत की है वो भी बंद हो जाएगी। हमे यह सोचना चाहिए कि उसने शुरुआत की है अल्लाह हिदायत दे कि शुरुआत ऐसी है पर वो पर्दे की अहमियत जाने और सही से पर्दा करे इस से इंशाअल्लाह पर्दा आम होने के चांस बढ़ सकते है लेकिन हम उन्हें क्रिटिसाइज करेंगे तो उस से यह और काम होना शुरू हो जाएगा।

4. पर्दे की अहमियत बताना कुछ अलग सी मिसाल देकर जैसे हम सुनते ही हैं कि किताब तो बहुत होती है पर गिलाफ सिर्फ  कुरआन पर होता है क्यूँकी वो खास किताब है। वैसे ही तुम भी हमारे लिए खास हो, तुम बाकी लड़कियों की तरह मामूली लड़की नहीं हो। अपनी हिफाज़त किया करो या यह बताना कि कैसे हजरत बीबी फातिमा ने कहा कि मेरा जनाजा भी रात के वक्त उठाया जाए ताकि मेरे ऊपर गैर मेहरम की नजर ना पड़े इससे हौसला अफजाई होगी और वो इंशा अल्लाह इस तरफ आएंगी जिससे हम दूर हो गए हैं।

5. घर में सिर्फ लड़की को पर्दा करने के लिए ना कहा जाए हम यह बहुत देखते हैं कि हर घर में बार-बार बेटियों को ही पर्दा करने के लिए कहा जाता है। इससे उनका यह बोझ लगता है बल्कि हमें अपने लड़कों को भी पर्दे की अहमियत और उन्हें भी निगाह का पर्दा करने की तालीम देनी चाहिए ताकि घर में और समाज में बराबरी हो और कोई भी पर्दे को अपने ऊपर बोझ ना समझे।


नोट: पर्दा एक औरत के लिए भी और मर्द के लिए भी बहुत जरूरी है हमें उसके साथ ही जिंदगी गुजरानी चाहिए पर्दा किसी काम में रुकावट पैदा नहीं करता बल्कि वो तो दायरे में रहकर सब करने की इजाजत देता है और हमें शैतानी नजरों से महफूज भी रखता है।


आपका दीनी भाई 
अब्दुल वाजिद

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