क्या हया (शर्म) सिर्फ़ औरतों के लिए है?
[अहादीस की रौशनी में]
पिछले आर्टिकल में हमने हया के ताल्लुक़ से क़ुरआन और अहादीस पर गौर ओ फिक्र से जाना कि "हया ईमान का हिस्सा है" और इसका ताल्लुक़ न केवल औरतों से है बल्कि मर्दों को भी हया का पैकर होना चाहिए।
इस हवाले से आइए अगली कड़ी में सुन्नते नबवी ﷺ की कुछ अहादीस का जायज़ा लेते हैं क्यों कि हया एक बहुत ही ऊंची और पसंदीदा सिफत है जो अल्लाह अपने पसंदीदा बन्दों को अता करता है।
1.हया – सुन्नते नबवी ﷺ है:
यही वजह है कि नबी-ए-रहमत ﷺ हया के पैकर थे। अबू सईद खुदरी रज़ि.का बयान है कि "नबी-ए-रहमत ﷺ पर्दे में रहने वाली कुंवारी लड़कियों से भी ज्यादा शर्मीले थे।" [सहीह बुखारी 6102]
अनस बिन मालिक रज़ि का बयान है कि "नबी-ए-कामिल ﷺ न गाली देते थे, न बेहयाई की बातें करते थे और न ही किसी पर लानत मलामत करते थे।" [सहीह बुखारी 6031]
2. हया ईमान का एक हिस्सा है और ईमान वाले जन्नत में जायेंगे:
हया की अहमियत को बताते हुए नबी- ﷺ ने फरमाया, "हया ईमान का एक हिस्सा है और ईमान वाले जन्नत में जायेंगे और बेहयाई का ताल्लुक जुल्म (बुराई/गुनाह) से है जालिम जहन्नम में जायेंगे।" [सुनन तिर्मिज़ी 2009]
3. हया से ख़ैर और भलाई ही हासिल होती है:
नबी ﷺ ने फरमाया, "हया से खैर और भलाई ही हासिल होती है।" [सहीह मुस्लिम 37/156]
"हया मुकम्मल ख़ैर (भलाई) है यानी हया की हर बात में ख़ैर मौजूद है।" [सहीह मुस्लिम 37/157]
4. इस्लाम की ख़ासियत हया है:
नबी-ए-कामिल ﷺ ने फरमाया, "बेशक हर दीन की एक खास ख़सलत (ख़ासियत) होती है और इस्लाम की अहम ख़सलत हया है।" [सुनन इब्ने माजा 4181]
नबी ﷺ ने देखा कि एक शख्स अपने भाई को हया के बारे में नसीहत कर रहा था कि तुम इतनी शर्म क्यों करते हो, ये देख कर नबी-ए-रहमत ﷺ ने फरमाया, "इसे इसके हाल पर रहने दो (इसका हया करना कोई बुरी बात नहीं है बल्कि) हया भी ईमान का एक हिस्सा है।" [सहीह बुखारी 24 , सहीह मुस्लिम 154]
5. हया और कम बोलना ईमान की दो शाखें है:
नबी-ए-कामिल ﷺ ने फरमाया, "हया और कम बोलना ईमान की दो शाखें हैं जबकि बेहयाई की बातें करना और ज्यादा बोलना निफ़ाक़ की दो शाखें हैं।" [सुनन तिर्मिज़ी 2027]
नबी-ए-उम्मी ﷺ ने फरमाया, "लोगों ने पिछले अम्बिया की तालीमात में से जो हासिल किया है उनमें से एक तालीम ये भी है कि जब तुम में हया मौजूद ना हो तो फिर तुम जो (बुरा अमल) चाहे करो। [यानी जिस शख्स में हया खत्म हो गई वो बुरा से बुरा काम करने में नहीं हिचकता।]" [सहीह बुखारी 3483]
अब तक जो भी आयात और अहदीस का हम ने जायजा लिया इस से साबित होता है कि शर्म वा हया न केवल औरतों के लिए है बल्कि मर्दों में भी शर्म वा हया होनी चाहिए पोस्ट ज्यादा लंबी न हो इसलिए हम अपनी कलम को यहीं विराम देते हैं।
इंशा अल्लाह, पार्ट-3 में हम गैर महरम औरतों से मुलाक़ात के आदाब करेंगे।
अल्लाह हमें और आप को सही दीन पढ़ने समझने और अमल करने की तौफीक अता फरमाए।
आमीन
फ़िरोज़ा
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