अल्लाह से धोका और बगावत (मुसलमान ज़िम्मेदार)
4. खानदानी शोहरत का ढाल
इससे पहले में अपनी बात शुरू करूं आइए कुछ दलील देखें
अल्लाह फरमाता है-
"ऐ लोगो! हक़ीक़त तो यह है कि हमने तुम सब को एक मर्द और एक अ़ौरत से पैदा किया है, और तुम्हें मुख़्तलिफ़ (विभिन्न और अनेक) क़ौमों और ख़ानदानों में इसलिए तक़सीम किया है ताकि एक-दूसरे की पहचान कर सको। दर हक़ीक़त अल्लाह के नज़दीक तुम में सबसे ज़्यादा इज़्ज़त वाला वह है जो तुममें सबसे ज़्यादा मुत्तक़ी (नेक और अच्छे आमाल वाला) हो। यक़ीन रखो कि अल्लाह सब कुछ जानने वाला, हर चीज़ से बा-ख़बर है।" [सूरह हुजरात 13]
हदीस ए नबवी:
हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) बयान करते हैं, रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया :
"बेशक अल्लाह ने तुमसे जाहिलियत का घमण्ड और बाप-दादा पर फ़ख़्र को दूर कर दिया है। (तुम्हें ईमान और इस्लाम से इज्ज़तदार बनाया है।) (आदमी दो क़िस्म के हैं :) साहिबे-ईमान, मुत्तक़ी या फ़ाजिर (बदकार) और बद-बख़्त। तुम सब आदम की औलाद हो और आदम मिट्टी से थे। लोगों को क़ौमी घमण्ड छोड़ना पड़ेगा, वो तो (कुफ़्र और शिर्क के सबब) जहन्नम के कोयले बन चुके वरना ये (क़ौम पर तकब्बुर करने वाले) अल्लाह के यहाँ गन्दगी के काले कीड़े से भी ज़लील होंगे जो अपनी नाक से गन्दगी को धकेलता फिरता है।" [अबू दाऊद 5116]
ऊपर दी हदीस और आयत से साफ ज़ाहिर हो रहा है अल्लाह ने हमे एक बाप आदम से पैदा किया है और पहचान के लिए कबीले बनाएं हैं ये कबीलो से मुराद जात (cast) नही बल्कि इससे मुराद पहचान के लिए कुछ इलाक़े थे और हदीस में बताया गया है कि कोम परस्ती को अल्लाह पसंद नही करता लेकिन इसके खिलाफ आज की उम्मत का हाल क्या है आइए नजर डालते हैं।
निकाह:
नबी करीम के दौर में निकाह के लिए अलग अलग कबीले तो होते थे लेकिन निकाह के मामले में कोई कबीला ये न कहता था के इस कबीले में निकाह नहीं होगा या इस कबीले में निकाह सिर्फ और सिर्फ तब होगा जब कबीला अपने कबीले में निकाह करे गोर करें की ये उस दौर की बात है जब छोटी छोटी बातो पर सालो साल जंगे हो जाती थी इतनी जहालत मुशरिक ए मक्का में थीं लेकिन इसके बावजूद भी उनमें ये न होता था की निकाह सिर्फ कबीला के अंदर ही होगा दीगर कबीले में न होगा।
अफसोस होता है जब वो जाहिल होकर निकाह करने में फर्क नही करते थे हम पढ़े लिखे होकर कास्ट सिस्टम में फंस गए और ये नारा आम किया की अंसारी अंसारी में निकाह करो, सैफी सैफी में निकाह करे, और मंजूरी मंसूरी में निकाह करे अब जरा सोचे क्या अल्लाह ने ये इजाज़त दी ? क्या नबी करीम ने ये इजाज़त दी?
बल्कि अल्लाह ने हमे एक मुस्लिम बनाया कलमे की बुनियाद पर निकाह हो सकता है तो कास्ट सिस्टम क्यों ?
नफरत की इंतेहा:
ये रस्म सदियों से चलती आ रही हैं हर मुसलमान सिर्फ अपनी कास्ट में निकाह करें जब कभी किसी रिश्तेदार को पता चलता है किसी के रिश्ते के ताल्लुक़ से तो कहते हैं किस कास्ट के हैं?
अब ज़रा सोचें मुशरिक ए मक्का ये जहालत थी ? नही थीं तो फिर क्या हम मुशरिक से गए गुज़रे हैं? अल्लाह को क्या बहाना पेश करेंगे?
क्या आप अल्लाह से ये कह सकेंगे की मेरे रिश्तेदार मुझे ताना देते की अलग कॉस्ट से निकाह कर दिया इसलिए मैने अपनी ही कास्ट में निकाह किया, क्या ये बहाना अल्लाह सुन लेगा?
जबकि नबी करीम ने साफ कह दिया की लड़की /लड़के में दीन देखो।
दूसरी बात ये है इस्लाम में कास्ट जैसा कोई तसव्वुर नहीं है ये बस अपने अपने कामों की वजह से फेमस हो गए तो लोगों ने इसको बतौर ए पहचान कास्ट में शुमार किया सैफी बड़ई होता है अंसारी लिहाफ गद्दे वाले होते है चौधरी दूध वाले होते हैं कुरैशी कसाई होते हैं यानी ये काम की वजह से कास्ट पर पर अफसोस लोगो ने इसको अलग रंग दिया।
यहां तक देखा जाता है की गैर कास्ट वाले को इंसान भी नहीं समझा जाता बल्कि बाद दफा ये मशहूर कर दिया गया है की पठान सबसे ऊंची कास्ट है और कुरैशी उससे नीची फिर तेली फिर सैफी आदि।
हालांकि अल्लाह के नज़दीक बड़ा वो है जो सबसे ज़्यादा तकवा रखता हो न की कास्ट के अंदर रहकर बड़ा बने। आज घर में बेटियां बैठी हैं निकाह नहीं हो रहे क्योंकि वालिद गेर कास्ट से निकाह करेगा नहीं और कास्ट में जल्दी बेहतर रिश्ता मिलेगा नही इसी में लड़की की उम्र निकल जाती है।
ध्यान रखें अल्लाह ने हमे मुसलमान बनाया है और कास्ट सिस्टम को खत्म करने के लिए नबियों को भेजा हमे चाहिए निकाह को आम करें और बाप दादा के बनाए गए बातिल जात ब्रादरी सिस्टम को तोड़े और धज्जियां उड़ा दें।
जरा सोचे क्या अल्लाह काला देखता है क्या अल्लाह गोरा देखता है क्या दौलत देखता है क्या खानदान देखता है?नहीं !वो बस तक्वा देखता है बाज दफा बीवी दीगर कास्ट में बहुत नेक होती है और अपनी कास्ट में बद कोई जरूरी नहीं है की आपकी कास्ट में आपको नेक लड़की मिले बल्कि जहां भी मिले किसी भी बरादरी में हो बस आपको दीन देखना है और लोगो की। फिक्र छोड़े बल्कि आखिरत देखें क्योंकि लोग यही रह जायेंगे लेकिन अल्लाह बाक़ी रहेगा और हिसाब लेगा फिर आपको ये लोग बचाने क्या दिखेंगे भी नहीं उस वक्त पॉवर सिर्फ अल्लाह की चलेगी किसी रिश्तेदार की नहीं चलेगी।
अल्लाह के वास्ते इस कास्ट सिस्टम को खत्म करे और सुन्नत अपनाएं।
अल्लाह दीन समझने की तौफीक अता फरमाए।
आमीन
जुड़े रहे आगे हम बताएंगे की "सुन्नत ए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हटकर इमामो की अंधाधुन तक़लीद" करना कैसा है?
आपका दीनी भाई
मुहम्मद रज़ा
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