तय्यब कलिमे का मतलब क्या है?
لا إله إلا اللهُ مُحَمَّدٌ رَّسُولُ اللهِ
'ला इला-ह इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह'
"अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं।"
ये वो कलिमा है जिसको पढ़ कर इंसान इस्लाम में दख़िल हो जाता है चाहे फिर काफ़िर ही क्यो ना हो। इस कलिमा को पढ़ने से एक गैर मुस्लिम भी मुसलमान हो जाता है जिसके हिस्से में पहले जहन्नुम थी अब वो भी जन्नत का हक़दार है।
चंद लफ्ज़ बोल देने से ही किस तरह इंसान, इंसान में फ्रक हो जाता है। जो पहले सीधी-सीधी सजा़ का हकदार था अब वो भी अल्लाह के प्यारो में से हो गया।
ज़बान से चंद कलिमात बोल देने से आप इस्लाम में दाखिल हो जाएंगे लेकिन मुसलमान (फरमाबरदार) तो खुदा को मान कर ही बनेंगे।
अब आप वो काम नहीं कर सकते जो आपका दिल या आपकी नफ़्स चाहती है बल्कि अब आपको वो काम करने होंगे जिसकी इजाज़त आपको इस्लाम देता है जिसका अल्लाह ताला ने हुकुम दिया है।
लेकिन सोचने वाली बात यह है की क्या सिर्फ ज़ुबान से बोल देना काफ़ी है?
नहीं, बल्कि असल मकसद तो अमल का है। सिर्फ ज़ुबान से इकरार कर देना ही काफी नहीं। अमल ना हो और इसका असर आपके दिल पर ना हो और ये कलिमा आपके ख़्याल, आपके जज़्बात, आपके अख़लाक और आपके अमाल ना बदल सके तो केवल ज़ुबान से बोल देने का कोई फ़ायदा नहीं। फिर आप ये कहने के मुस्तहिक नहीं होंगे कि अपने कलमा पढ़ा है या आप मुसलमान हैं। आप सिर्फ नाम के मुसलमान होंगे काम के नहीं।
ये बात गौर करने वाली है कि कहीं आप जाने अनजाने में इस कलीम की तौहीन तो नहीं कर रहे हैं? अभी इस बात का एहसास करें कि इस कलिमा के मानी कितने बड़े हैं जिसपर हम ग़ौर नहीं करते।
इस कलिमा को सिर्फ पढ़े ही नहींबल्कि समझकर पढ़े ताकि आप ये एहसास कर पाएं कि आप कितनी बड़ी गवाही दे रहे हैं और अपने दिलों और जिंदगी में इसको उतारे और अमल में लायें।
मान लीजिए आपको प्यास लगी है तो क्या आपके पानी-पानी पुकारने से ही आपकी प्यास बुझ जाएगी?
नहीं, बल्कि आपको खुद उठकर पानी पीना होगा तब आप अपनी प्यास बुझाएंगे।
यही हाल कलीमे तय्यब का है आपको सिर्फ उसकी ज़ुबान से बोल बोल कर तस्बीह ही नहीं करनी है बल्कि उसपर अमल भी करना है।
لا إله إلا اللهُ مُحَمَّدٌ رَّسُولُ اللهِ
अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं।
अल्लाह ताला हमें कालिमा पढ़ने के साथ-साथ इसपर अमल करने की भी तौफीक़ अता फरमाये और नाम का ही नहीं बल्कि काम का भी मुसलमान बने।
आमीन
फिरदौस अल्वी
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