अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-10)
सैयदना यूनुस अलैहिस्सलाम
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1- यूनुस अलैहिस्सलाम का क़िस्सा और उसकी हिकमत
यूनुस अलैहिस्सलाम का क़िस्सा अय्यूब अलैहिस्सलाम के क़िस्से के फ़ौरन बाद आता है जो अल्लाह की क़ुदरत का सुबूत, अपने बन्दों पर उसकी कृपा और उनकी सहायता की पुष्टि का समर्थन करता है, जबकि उम्मीदें दम तोड़ चुकी हों, मायूसी इंतेहा को पहुंच चुकी हो, चारो ओर गहरा अंधेरा ही अंधेरा छाया हो, बच निकलने के तमाम रास्ते बंद हो चुके हों, न कोई रौशनी की किरण नज़र आये, न हवा का गुज़र मुमकिन हो, न कोई इच्छा बाक़ी रह जाए और न कोई अरमान, मौत की चक्की पूरी शक्ति और गति से चलती हो जो जीवन के कोमल और बारीक दाने को पीसकर रख दे उस समय अल्लाह की क़ुदरत का हाथ ज़ाहिर होता है, एक बहुत मज़बूत और शक्तिशाली, हिकमत से भरा हुआ और रहम वाला हाथ, जो उस कमज़ोर इंसान को नुक़सान पहुँचाने वाले शेर के जबड़े और विनाशकारी मौत के मुंह से खींच लाता है, कि बिना किसी खरोंच और नुक़सान के स्वस्थ और सही सालिमवऐसे बाहर आता है जैसे कि वह अपने घर में अपने बिस्तर पर अपने परिवार में सुरक्षित था।
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2- नैनवा की बस्ती
यूनुस अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने एक बस्ती (नैनवा) की तरफ़ नबी बनाकर भेजा था, उन्होंने ने बस्ती के लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाया, बस्ती वालों ने इनकार कर दिया और कुफ़्र में बढ़ते चले गए तो वह उनके बीच से ग़ुस्सा हो कर चले गए और तीन दिन बाद अज़ाब की धमकी दी जब बस्ती वालों ने सोच विचार किया तो उनकी समझ में आया कि नबी कभी झूठ नहीं बोलते तब वह अपने बच्चों, जानवरों और मवेशियों के साथ मैदान में निकल पड़े मां और उनके बच्चों को अलग अलग किया फिर उन्होंने अल्लाह तआला से रो रो कर दुआ की और उसकी शरण मांगी। ऊंट और उसके बच्चे तड़प उठे, गाय और उसके बच्चे बेहोश होने लगे, भेड़ बकरियां और उसके बच्चे ठोकर खा खा कर गिरने लगे और दुआ करने लगे तो अल्लाह ने उनपर से अज़ाब टाल दिया। अल्लाह तआला फ़रमाता है
"फिर क्या ऐसी कोई मिसाल है कि एक बस्ती अज़ाब देखकर ईमान लाई हो और उसका ईमान उसके लिए फ़ायदेमंद साबित हुआ हो? यूनुस की क़ौम के इलावा, वह क़ौम जब ईमान ले आई थी तो अलबत्ता हमने उसपर से दुनिया की ज़िन्दगी में रुसवाई का अज़ाब टाल दिया था और उसको एक मुद्दत तक ज़िन्दगी से फ़ायदा उठाते रहने का मौक़ा दे दिया था। (1)
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1, सूरह 10 यूनुस आयत 98
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3- यूनुस अलैहिस्सलाम मछली के पेट में
यूनुस अलैहिस्सलाम बस्ती से जाने के बाद एक कश्ती पर सवार हो गए, वह कश्ती हचकोले खाने लगी। लोग डरे कि कहीं वह डूब न जाएं। फिर उन्होंने एक आदमी को फेंकने के लिए क़ुरआ अंदाज़ी (lucky draw) की ताकि कश्ती का बोझ कम हो जाय, पर्ची में यूनुस के नाम निकला, लोगों ने उन्हें फेंकने से इनकार किया, उन्होंने फिर पर्ची डाली इस बार भी यूनुस का नाम निकला, उन्होंने उन्हें फेंकने से इनकार किया फिर तीसरी बार पर्ची डाली गई तब भी यूनुस का ही नाम था अल्लाह तआला ने फ़रमाया
"फिर पर्ची डालने में शरीक हुआ और उसमें मात खाई।" (1)
इस बार जैसे ही यूनुस का नाम निकला वह खड़े हुए, अपना कपड़ा समेटा फिर ख़ुद को समुद्र के हवाले कर दिया उसी समय अल्लाह तआला ने एक मछली को भेजा जो समुद्र चीरती हुई आई जैसे ही यूनुस ने कश्ती से पानी में छलांग लगाई मछली ने उन्हें निगल लिया। अल्लाह ने उस मछली के दिल मे बात डाल दिया कि वह यूनुस के जिस्म को न खाए और न उनकी हड्डियां तोड़े। (2)
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1, सूरह 37 अस साफ़्फ़ात आयत 141
2, तफ़्सीर इब्ने कसीर
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4- अल्लाह ने यूनुस अलैहिस्सलाम की दुआ क़ुबूल कर ली
यूनुस अलैहिस्सलाम मछली के पेट के अंधेरे में थे, समुद्र के अंधेरे में थे, रात के अंधेरे में थे अंधेरे पर अंधेरा कितना घनघोर अंधेरा रहा होगा, सुकून से कितना दूर वह ठहरे रहे जैसे अल्लाह ने ठहराना चाहा फिर अल्लाह ने वह दुआ दिल में डाली जिससे कि अंधेरा छट जाय, तकलीफ़ दूर हो जाय और सात आसमान से रहमतें उतरे। आप क़ुरआन सुनें इस अजीब और बेमिसाल क़िस्से को बयान किया है जिसमें हर मुसीबत और परिशानी में फंसे हुए और मायूस इंसान के लिए तसल्ली का सामान है, जिसपर ज़मीन लंबी चौड़ी होने के बावजूद तंग हो गई हो, ख़ुद अपनी जान उसपर भारी लगने लगी हो। और उसने अपनी आंखों से देख लिया हो कि अल्लाह के इलावा कहीं और ठिकाना मिलने वाला नहीं है।
और मछलीवाले को भी हमने नवाज़ा। याद करो जबकि वह बिगड़कर चला गया था और समझा था कि हम उसे न पकड़ेंगे। आख़िर उसने अँधेरों में पुकारा
لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنْتُ مِنَ الظَّالِمِينَ
“नहीं है कोई ख़ुदा मगर तू, पाक है तेरी ज़ात, बेशक मैं ही ज़ालिम हूं।"
"तब हमने उसकी दुआ क़ुबूल की और ग़म से उसको निजात दी, और इसी तरह हम ईमानवालों को बचा लिया करते हैं।" (1)
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1, सूरह 21 अल अंबिया आयत 87, 88
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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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