Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-12a): Isa as

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-12a): Isa as

अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-12a)

सैयदना ईसा अलैहिस्सलाम

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1- अल्लाह का चमत्कार

सैयदना ईसा अलैहिस्सलाम का दौर आता है वह हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले आख़िरी रसूल हैं। यह क़िस्सा अल्लाह तआला के ज़बरदस्त इरादे, उसकी आज़ाद क़ुदरत और लतीफ़ व बारीक हिकमत से ज़ाहिर होता है। यह तमाम मामले आम आदत के बिल्कुल ख़िलाफ़ हैं, उनका जन्म ही आम आदत के ख़िलाफ़ एक चमत्कार था जिसके कारण अक़्लमंद हैरान थे और क़ानून ए फ़ितरत तब्दील हो गया था। जो क़ानून ए फ़ितरत पर ईमान रखते हैं और जो व्यक्ति नेचर के क़ानून को माबूद की शक्ल में मानता हो उसपर उसका ईमान और यक़ीन टूट गया जो तजुर्बा, मुशाहिदा (अवलोकन) चिकित्सा और क़ानून ए फ़ितरत पर फ़रिश्ते की तरह ईमान लाता था कि कोई परिवर्तन और तब्दीली हो ही नहीं सकती और अल्लाह की क़ुदरत से नादान बना रहा उसे सख़्त हैरानी हुई कि यह कैसे संभव हुआ? हालांकि अल्लाह की क़ुदरत तो हर चीज़ को घेरे हुए और ग़ालिब है, उसके इरादे के दरमियान कोई चीज़ रुकावट नहीं डाल सकती क्योंकि,

"वह तो जब किसी चीज़ का इरादा करता है तो केवल यह कहता है कि हो जा और वह हो जाती है।" (1)

अल्बत्ता उस व्यक्ति के लिए यक़ीन करना आसान है जो अल्लाह पर ईमान लाए कि वही हर चीज़ पर क़ादिर और हर चीज़ का ख़ालिक़ है।

"वह अल्लाह ही है जो तख़लीक़ का मंसूबा बनाने वाला, उसको नाफ़िज़ करने वाला और उसी के मुताबिक़ सूरतगरी करने वाला है। उसके लिए बेहतरीन नाम हैं। हर चीज़ जो आसमानों और ज़मीन में है उसकी तस्बीह कर रही है, वह ज़बरदस्त और हकीम है।" (2)

जिसने आदम को पानी, मिट्टी और बग़ैर माता पिता के पैदा किया है क्या उसके लिए बग़ैर पिता के सिर्फ़ मां से बच्चा पैदा करना और भी आसान नहीं है? बग़ैर मां-बाप की पैदाइश के मुक़ाबले में तो यह तस्दीक़ के लिहाज़ से भी ज़्यादा आसान है। इसीलिए तो अल्लाह तआला फ़रमाता है "बेशक ईसा की पैदाश की मिसाल अल्लाह के नज़दीक आदम की तरह है उसने आदम को मिट्टी से पैदा किया फिर कहा, हो जा और वह हो गया। (3)

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1, सूरह 36 यासीन आयत 83 

2, सूरह 57 अल हश्र आयत 24

3, सूरह 03 आले इमरान आयत 59

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2- तमाम मामला ही अजीब था

सैयदना ईसा अलैहिस्सलाम का तमाम मामला ही बड़ा अजीब था। उनकी पैदाईश ऐसे ज़माने में हुई जब यूनानी तर्कसंगत विज्ञान (अक़्ली उलूम) और गणित के ज्ञान में उच्च स्थान पर थे और मेडिकल पर उनकी हुक्मरानी थी।

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3- दुनिया की टिप टॉप की तरफ़ यहूदियों का झुकाव

यहूदियों का झुकाव अपने युग के रायेज इल्म की तरफ़ हो गया हालांकि उनमें बहुत से नबी हुए थे। उस युग में रूह के इनकार और उससे संबंधित चीज़ों की धूम मची हुई थी। उनकी आदत थी कि वह जो कुछ भी आस पास देखते थे उसकी भौतिक व्याख्या (माद्दी तफ़्सीर) करते थे, उनके यहां किसी चीज़ का वजूद या कोई हादसा बग़ैर किसी कारण और वजह के नहीं हो सकता था। चुनांचे वह चमत्कार जिसे अल्लाह ने सैयदना ईसा अलैहिस्सलाम को दिया था वह तंग माद्दी अक़ल रखने वालों का इलाज भी था, ज़माने की ज़रूरत भी थी और समय की पुकार भी।

यहूदियों ने ज़ाहिर पर नज़र रखी, वह गूदे के बजाय छिलके से चिमटे रहे, हक़ीक़त के बजाय दिखावे पर ध्यान दिया, तत्व और ख़ून के पाक होने और दौलत व सामान और माल व दौलत की मुहब्बत में हद से बहुत आगे बढ़ गए और दुनिया की ज़िन्दगी पर पूरी तरह टूट पड़े। उनके दिल सख़्त हो गए थे और उनकी तबियत ख़ुश्क हो गई थी।

किसी कमज़ोर के साथ वह नरमी और किसी फ़क़ीर के साथ शफ़क़त से पेश नहीं आते थे। और जिनकी रगों में इस्राईली ख़ून नहीं होता था उनसे जानवरों, कुत्तों, और निर्जीव वस्तुओं जैसा मामला करते थे।

ताक़तवर अमीरों के सामने झुक जाते और कमज़ोर फ़क़ीरों को दबाते, ताक़त के समय सख़्त हो जाते और कमज़ोरी में नरम पड़ जाते, ज़िल्लत और ग़ुलामी उनकी आदत बन चुकी थी उसका कारण यह था कि उन्होंने रूमी हुकूमत में एक लंबी मुद्दत तक सीरिया और फ़लीस्तीन में ज़िन्दगी गुज़ारी थी। मुनाफ़िक़त, कायरता, बहाना बाज़ी, धोख़ाधड़ी, गुप्त आंदोलन और साज़िशी जज़्बात ने उनके यहां जगह पा ली थी।

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4- घटियापन और सरकशी

उनमें ऐसे लोग थे जिन्होंने नबियों से घटिया व्यवहार किया और उनपर दिलेर हो गए नौबत यहांतक पहुंची कि वह उनका क़त्ल करने लगे, सूद का लेनदेन करते, दीनी तालीम को बेकार और फ़ुज़ूल समझते, सख़्ती और अत्याचार करते, इंसानियत से हमदर्दी का जज़्बा कमज़ोर हो गया था, उनमें से अधिकांश के दिल अल्लाह की ख़ालिस मुहब्बत और इंसानियत (मानवीय गुणों) से ख़ाली थे चाहे उसकी असल, फ़ज़ीलत और इंसानियत का सम्मान कितना ही क्यों न हो।

वह बराबरी, भाईचारे, नेकी और शराफ़त का अर्थ भूल चुके थे हालांकि नबूवत और रिसालत पर ईमान रखते थे इसलिए कि उनमें बहुत से नबी हुए और उनके सहीफ़ों में ऐसी ख़बरें भरी हुई थीं लेकिन आख़िरी दौर में उनका ईमान केवल उसी पर होता जो उनकी अपनी नफ़्स की ख़्वाहिशात के मुताबिक़ होती, उनकी सीरत और अख़लाक़ में मददगार होती। अलबत्ता जो उन्हें समझाता, उनकी कमज़ोरियां बताता, सच्चे रास्ते और सीधे दीन की तरफ़ बुलाता और उनकी इस्लाह चाहता उसके दुश्मन हो जाते और उससे जंग करते, वह इतने दिलेर थे कि किसी पर झूठा इल्ज़ाम लगाना, झूठ घड़ना, हक़ को छुपाना, और झूठी गवाही देना उनके लिए आम बात थी।

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5- बनी इस्राईल पर अल्लाह का एहसान

बनी इस्राईल एक ऐसी उम्मत थे जो प्रत्येक युग में अपने समकालीन (ज़माने के लोगों में) अपने तौहीद की अक़ीदे की वजह से मुमताज़ (सर्वोपरि) थे और दूसरों पर उनकी फ़ज़ीलत का यही राज़ था।

"ऐ बनी इस्राईल याद करो वह नेअमत जो मैंने तुम को अता किया था और संसार में तुमको फ़ज़ीलत बख़्शी थी।" (1)

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1, सूरह 02 अल बक़रह आयत 122

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6- एहसान की नाक़दरी

लेकिन दूसरे क़बीलों के मेलजोल, हुकूमत और नबियों की तालीम को लंबा समय बीत जाने के कारण शक और मूर्तिपूजा उनमें फैल गई थी उनके अक़ीदे ख़राब और आदतें जाहिलों जैसी हो गई थी उन्होंने मिस्र में बछड़े की पूजा की, उज़ैर (अलैहिस्सलाम) की प्रशंसा और बड़ाई में हद से आगे बढ़ गए यहांतक कि इंसानी सीमाओं को पार कर लिया। उनमें इस क़दर बुराई आ गई थी कि शिर्क और मूर्तिपूजा, जादू और कुछ और बुरे कामों को भी कुछ नबियों के साथ मंसूब कर दिया और इस मामले में उन्हें अल्लाह का डर बिल्कुल नहीं रहा।

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7- हसब नसब का घमंड

तमाम बुराइयों के बावजूद बनी इसराईल को अपने नसब पर बड़ा घमंड और अपनी ख़्वाहिशात और ख़्वाबों पर बड़ा विश्वास था, वह कहते थे 

"हम अल्लाह के बन्दे और उसके महबूब हैं।" (1)

और यह भी कहते थे,  

"हमें तो वैसे जहन्नम की आग छूएगी नहीं और अगर जहन्नम में गए भी केवल कुछ दिनों के लिए।" (2)

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1, सूरह 05 अल माएदा आयत 81

2, सूरह 02 अल बक़रह आयत 80

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8- मसीह अलैहिस्सलाम का जन्म

मसीह अअलैहिस्सलाम का जन्म, उनकी ज़िन्दगी, उनकी दावत, और उनकी अर्थव्यवस्था प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक चैलेंज था। प्रचलित (मशहूर) आदत व आमाल, प्रचलित क़ानून और उन बुलंद अक़दार के ख़िलाफ़ जिनपर यहूदी ईमान रखते थे। वह माहौल जिसमें यहूदी सांस लेते थे और एक दूसरे से लड़ते थे चुनांचे ईसा अलैहिस्सलाम ऐसे तरीक़े से पैदा हुए जो दुनिया के रायेज तरीक़े के बिलकुल ख़िलाफ़ था। मां की गोद से ही बातचीत करने लगे एक फ़क़ीर और अल्लाह की फ़रमाबरदार बन्दी की गोद में पले बढ़े और ऐसे माहौल में ज़िन्दगी गुज़ारी जो लोगों के ताने और मजाक़ से भरी हुई थी और घमंड और मालदारी के दिखावे से कोसों दूर थी। वह फ़क़ीरों के साथ बैठते, उनके साथ खाते पीते, उनसे प्यार करते, कमज़ोर और ग़रीबों के दुख दर्द दूर करते और निर्धन व मालदार में, हाकिम और जनता में और सज्जन और घटिया में कोई भेदभाव नहीं करते थे।

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9- मसीह अलैहिस्सलाम के मुअजिज़ात (चमत्कार)

अल्लाह ने ईसा अलैहिस्सलाम को नबूवत और वही के जरिए इज़्ज़त बख़्शी, रूहुल क़ुदुस और बड़े शानदार मुअजिज़े के ज़रिए मदद की। अल्लाह ने उनके द्वारा उन मरीज़ों को शिफ़ा दी जिनका इलाज डॉक्टर और हकीम न कर सकते थे। वह अंधे और कोढ़ी को ठीक करते, मुर्दों को अल्लाह के हुक्म से ज़िन्दा करते, लोगों के सामने मिट्टी से परिंदे जैसी शक्ल बनाते और जब उसमें फूंक मारते तो अल्लाह के हुक्म से परिंदा बनकर उड़ जाता था, लोग जो खाते या घरों में ज़ख़ीरा करके रखते थे उसके बारे में भी बता देते थे।

वह तमाम उस अहद को दोहराते थे रसूलों के मुअजिज़ात और अल्लाह की क़ुदरत की बातें जिसकी सूचना तौरात में दी गई थी उसपर ईमान की तजदीद करते थे। तजुर्बा और महसूसात की इबादत को झूठा बताते। लोग अल्लाह की असीम क़ुदरत और रब्बानी इरादे की कुदरत का इनकार करने लगे और उसपर डट गए। जिसका वह इल्म रखते थे या जिसका अवलोकन किया था उसके इलावा उनके यहां किसी नई बात की गुंजाईश नहीं थी।

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10- दीन की दावत और यहूदियों का इनकार

ईसा अलैहिस्सलाम ने यहूदियों को बहुत से मामलात में ग़लत बताया जिसमें या तो उनकी अपनी ख़्वाहिशात थीं या फिर जिन मामलात में वह बहुत आगे बढ़ गए थे। जिसे अल्लाह ने हलाल किया था उन्होंने उसे हराम कर लिया था और जिसे अल्लाह ने हराम किया था उसे हलाल कर लिया था। ईसा अलैहिस्सलाम उन्हें वास्तविक दीन और उसकी हक़ीक़ी रूह की जानिब दावत देते थे वह अल्लाह की मुहब्बत को तमाम मुहब्बतों पर ग़ालिब करना चाहते थे। वह इंसानों के सम्मान और उनके साथ रहमत और मेहरबानी और फ़क़ीरों की हमदर्दी की तरफ़ बुलाते थे, वह उन्हें ख़ालिस तौहीद की दावत देते थे और उनसे रोकते थे जो जाहिली आदतें और ग़लत अक़ीदे नबियों के दिन में रिवाज पा गए थे।

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11- यहूदी लड़ाई करना चाहते थे

यह तमाम बातें यहूदियों को बोझ मालूम होतीं, उन्होंने ईसा अलैहिस्सलाम से जंग की ठानी और उनपर एक ही कमान से कई तीर फेंके, उन्होंने इल्ज़ाम और बुहतान की बारिश कर दी उन्हें भद्दी भद्दी गालियां दीं, बुरा भला कहा, उनकी पाक मां मरियम पर ताने दिए और बदकारी का इल्ज़ाम लगाया, उनकी डटकर मुख़ालिफ़त की, उन्हें धुत्कारा ,उनके लिए बदमाशों की एक फ़ौज तैयार की और उनके तमाम रास्ते बंद कर दिए।

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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि 
अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही  

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