शबे बरात (शाबान) (पार्ट-2)
आमाल अल्लाह के हुज़ूर कब कब पेश होते है?
(1) शाबान के महीने में (इस से मुराद शाबान का पूरा महीना है)
أَخْبَرَنَا عَمْرُو بْنُ عَلِيٍّ عَنْ عَبْدِ الرَّحْمَنِ قَالَ حَدَّثَنَا ثَابِتُ بْنُ قَيْسٍ أَبُو الْغُصْنِ شَيْخٌ مِنْ أَهْلِ الْمَدِينَةِ قَالَ حَدَّثَنِي أَبُو سَعِيدٍ الْمَقْبُرِيُّ قَالَ حَدَّثَنِي أُسَامَةُ بْنُ زَيْدٍ قَالَ قُلْتُ يَا رَسُولَ اللَّهِ لَمْ أَرَكَ تَصُومُ شَهْرًا مِنْ الشُّهُورِ مَا تَصُومُ مِنْ شَعْبَانَ قَالَ ذَلِكَ شَهْرٌ يَغْفُلُ النَّاسُ عَنْهُ بَيْنَ رَجَبٍ وَرَمَضَانَ وَهُوَ شَهْرٌ تُرْفَعُ فِيهِ الْأَعْمَالُ إِلَى رَبِّ الْعَالَمِينَ فَأُحِبُّ أَنْ يُرْفَعَ عَمَلِي وَأَنَا صَائِمٌ
(كتاب الصيام » - صوم النبي صلى الله عليه وسلم بأبي هو وأمي وذكر)
अबु सईद अल मक़बुरी से रिवायत है कि हैं कि मुझसे उसामा बिन ज़ैद ने बयान किया: मैने पूछा ऐ अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जितना मैं आप को शाबान के महीने में रोज़ा रखते हुए देखता हूं इतना किसी और महीने में नहीं देखता, आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया: "रजब और रमज़ान के बीच यह ऐसा महीना है जिससे लोग ग़ाफ़िल रहते हैं। यह एक ऐसा महीना है जिसमें लोगों के आमाल रब्बुल आलमीन के सामने पेश किए जाते हैं,इसलिए मैं चाहता हूं कि जब मेरा अमल पेश हो तो मैं रोज़े की हालत में रहूं"
(सुनन निसाई हदीस नंबर 2359/ किताबूस स्याम, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रोज़े के बयान में)
नोट: इस हदीस को केवल इमाम निसाई रहमतुल्लाह अलैहि ने रिवायत किया है, सनद के लिहाज़ से यह "हसन" है।
[हदीस हसन: (i) जिस की सनद मुत्तसिल (जुड़ी हुई) हो (ii) जिसके रावी आदिल यानी अच्छे किरदार (characters) के हों। (iii) हदीस के रावियों में हिफ़ाज़त से मुतअल्लिक़ कुछ कमी पाई जाय। (iv) हदीस शाज़ न हो। (एक क़ाबिले एतेमाद रावी अपने से ज़्यादा क़ाबिले एतेमाद रावी की मुख़ालिफ़त न करे (v) हदीस में कोई छुपी हुई कमी न पाई जाय]
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(2) हफ़्ते में 2 बार सोमवार और जुमेरात में
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ عَنْ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ تُعْرَضُ أَعْمَالُ النَّاسِ فِي كُلِّ جُمُعَةٍ مَرَّتَيْنِ يَوْمَ الِاثْنَيْنِ وَيَوْمَ الْخَمِيسِ فَيُغْفَرُ لِكُلِّ عَبْدٍ مُؤْمِنٍ إِلَّا عَبْدًا بَيْنَهُ وَبَيْنَ أَخِيهِ شَحْنَاءُ فَيُقَالُ اتْرُكُوا أَوْ ارْكُوا هَذَيْنِ حَتَّى يَفِيئَا
(البر والصلة والآداب » - النهي عن الشحناء والتهاجر)
अबु हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "लोगों के आमाल हफ़्ते में दो बार सोमवार व जुमेरात (monday & thursday) के दिन पेश किए जाते हैं तमाम बंदों की मग़फ़िरत कर दी जाती है उस बंदे के इलावा जिसके भाई और उसके दरम्यान दुश्मनी और बुग़ज़ (Irritation = जलन) होता है। कहा जाता है उन दोनों को छोड़ दो या delay कर दो यहां तक कि दोनों आपस मे सुलह कर लें।
(सहीह मुस्लिम हदीस नंबर 6547/ किताबुल बिर वस सिला वल आदाब, दुश्मनी और बुग़ज़ से रुकने के बयान में' मुअत्ता इमाम मालिक 1645)
حَدَّثَنَا ابْنُ أَبِي عُمَرَ حَدَّثَنَا سُفْيَانُ عَنْ مُسْلِمِ بْنِ أَبِي مَرْيَمَ عَنْ أَبِي صَالِحٍ سَمِعَ أَبَا هُرَيْرَةَ رَفَعَهُ مَرَّةً قَالَ تُعْرَضُ الْأَعْمَالُ فِي كُلِّ يَوْمِ خَمِيسٍ وَاثْنَيْنِ فَيَغْفِرُ اللَّهُ عَزَّ وَجَلَّ فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ لِكُلِّ امْرِئٍ لَا يُشْرِكُ بِاللَّهِ شَيْئًا إِلَّا امْرَأً كَانَتْ بَيْنَهُ وَبَيْنَ أَخِيهِ شَحْنَاءُ فَيُقَالُ ارْكُوا هَذَيْنِ حَتَّى يَصْطَلِحَا ارْكُوا هَذَيْنِ حَتَّى يَصْطَلِحَا
(البر والصلة والآداب »- النهي عن الشحناء والتهاجر)
अबु हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि "हर जुमेरात और हर सोमवार (thursday & monday) के दिन आमाल पेश किए जाते हैं उस दिन अल्लाह तआला उन तमाम लोगों की मग़फ़िरत कर देता है जो अल्लाह के साथ किसी को शरीक नहीं करता, उस बंदे के इलावा जिसके भाई और उसके दरमियान दुश्मनी और बुग़ज़ (Irritation = जलन) होता है। कहा जाता है उन दोनों को रहने दो यहां तक कि यह आपस मे सुलह कर लें।
जबकि एक और हदीस में यह इज़ाफ़ा है,
تُفْتَحُ أَبْوَابُ الْجَنَّةِ يَوْمَ الْإِثْنَيْنِ، وَيَوْمَ الْخَمِيسِ، فَيُغْفَرُ لِكُلِّ عَبْدٍ لَا يُشْرِكُ بِاللهِ شَيْئًا،
सोमवार और जुमेरात के दिन जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और हर उसे बंदे की मग़फ़िरत कर दी जाती है जो अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक ना करता हो।
(सहीह मुस्लिम 6544, 6546/ किताबुल बिर वस सिला वल आदाब, दुश्मनी और बुग़ज़ से रुकने के बयान में, मुअत्ता इमाम मालिक 1644, जामे तिर्मिज़ी 2023)
وَعَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: «تُعْرَضُ الْأَعْمَالُ يَوْمَ الِاثْنَيْنِ وَالْخَمِيسِ فَأُحِبُّ أَنْ يُعْرَضَ عَمَلِي وَأَنَا صَائِمٌ»
(الصوم عن رسول الله » - ما جاء في صوم يوم الاثنين والخميس)
अबु हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "सोमवार और जुमेरात (monday & thursday) के दिन आमाल पेश किए जाते हैं, इस लिए मुझे यह बात पसंद है कि मेरा अमल जब पेश हो तो मैं रोज़े से हूं। (हसन)
(जामे तिर्मिज़ी 747/ किताबुस सौम अन रसूलिल्लाह, सोमवार और जुमेरात के रोज़े के बयान में/ मिश्कातुल मसाबीह 2056)
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(3) रोज़ाना 2 बार सुबह और शाम
حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرِ بْنُ أَبِي شَيْبَةَ وَأَبُو كُرَيْبٍ قَالَا حَدَّثَنَا أَبُو مُعَاوِيَةَ حَدَّثَنَا الْأَعْمَشُ عَنْ عَمْرِو بْنِ مُرَّةَ عَنْ أَبِي عُبَيْدَةَ عَنْ أَبِي مُوسَى قَالَ قَامَ فِينَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ بِخَمْسِ كَلِمَاتٍ فَقَالَ إِنَّ اللَّهَ عَزَّ وَجَلَّ لَا يَنَامُ وَلَا يَنْبَغِي لَهُ أَنْ يَنَامَ يَخْفِضُ الْقِسْطَ وَيَرْفَعُهُ يُرْفَعُ إِلَيْهِ عَمَلُ اللَّيْلِ قَبْلَ عَمَلِ النَّهَارِ وَعَمَلُ النَّهَارِ قَبْلَ عَمَلِ اللَّيْلِ حِجَابُهُ النُّورُ
(الإيمان » - في قوله عليه السلام إن الله لا ينام وفي قوله حجابه)
अबु मूसा अशअरी रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमारे दरमियान खड़े होकर 5 बातों पर मुश्तमिल एक ख़ुत्बा दिया,
(i) बेशक अल्लाह तआला न सोता है और न सोना उसके शायाने शान है।
(ii) वह मीज़ान के पलड़ों को झुकाता और ऊपर उठाता है। (iii & iv) रात के आमाल दिन के आमाल से पहले और दिन के आमाल रात के आमाल से पहले पेश किए जाते हैं।
(v) उसका हिजाब नूर है।
(सही मुस्लिम हदीस नंबर 445/ किताबुल ईमान, अल्लाह तआला सोता नहीं,और उसके दीदार के बयान में.... मिश्कातुल मसाबीह हदीस नंबर 91/ तक़दीर पर ईमान लाने का बयान)
By आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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